दिल्ली में बारिश की पहली बूंदें पड़ते ही ख्याल आया कि जल्द ही मौसम खुद एक बड़ी खबर बनने जा रहा है। सूचना है कि मौसम विभाग को साल 2010-11 के लिए 156 करोड़ रूपए की राशि दी गई है ताकि मौसम से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण प्रस्तावित परियोजनाओं का प्रारूप अमली जामा पहन सके। यह राशि तीन परियोजनाओं के लिए दी गई है – भूकंप से जुड़े खतरों की जानकारी, कॉमन वैल्थ गेम्स के दौरान खिलाड़ियों को मौसम की सूचना देने और मौसम पर आधारित एक चौबीसिया चैनल की शुरूआत के लिए। प्रस्तावित मौसम चैनल का काम मौसम से जुड़ी तमाम जरूरी जानकारियों को आपस में बांधना और उनसे जुड़ी खबरों को जनता तक पहुंचाना होगा।
बेशक यह एक स्वागत योग्य कदम है। वैसे भी 400 चैनलों के इस देश में अभी भी नए चैनलों की काफी गुंजाइश दिखाई देती है। भले ही मनोरंजन, फिल्म और न्यूज से संबंधित चैनलों की बाढ़-सी आ गई है लेकिन जहां तक मौसम का सवाल है, यह अभी भी काफी हद तक अनछुआ क्षेत्र ही है। याद कीजिए, दूरदर्शन जब इकलौता चैनल हुआ करता था, तब कैसे समाचारों के अंत में इनसैट 1-बी की तस्वीरों के जरिए मौसम की रटी-रटाई जानकारी दी जाती थी। तब उन रूखी-सूखी तस्वीरों को देखना भी कम रोमांचक नहीं था। हालांकि मौसम की कहानी बताने वाली भाषा भी दर्शक को तब रट चुकी थी। फलां-फलां राज्यों में गरज के साथ छींटे पड़ने की संभावना है, फलां में मौसम शुष्क बना रहेगा और फलां में धूल भरी आंधी चलेगी। यह बात अलग है कि दी जा रही भविष्यवाणियों में से आधी अक्सर गलत ही निकला करती थीं। इसलिए कई दर्शक मौसम की सूचना को भी अपने मनोरंजन के लिए ही सुना करते थे और शर्त लगाया करते थे कि दी जा रही जानकारियों में से कितनी वाकई सही साबित होंगी। (यह बात अलग है कि इसके ले मौसम विभाग को सीधे तौर पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता)।
बाद में निजी चैनल आए तो उन्होंने खूब नए प्रयोग किए। एनडीटीवी तो अपने दफ्तर की छत से ही मौसम की खबर देने लगा और मजे की बात यह कि मौसम का एंकर इतनी लंबी सूचना को याद करके ही देता था। इसके लिए टेलीप्रांप्टर का इस्तेमाल नहीं होता था। इसलिए मौसम की एंकरिंग काफी मशक्कत का काम थी। उन दिनों मौसम की सूचना देने वाला एंकर सारा दिन इसी रेलमपेल में व्यस्त दिखाई दिया करता था। बाद में आज तक ने मौसम को लेकर कई प्रयोग किए। यहां तक कि मौसम के ग्राफिक पर ट्रैक्टर ही चला दिया। ट्रक्टर हर शहर को छूता जाता और उसके साथ ही अधिकतम और न्यूनतम तापमान जिन्न की तरह प्रकट हुए चले जाते। इस प्रक्रिया में एंकर को ही किनारे कर दिया गया।
दरअसल लोगों में मौसम का हाल जानने की उत्सुकता हमेशा ही रही है। दूसरे, मौसम पर टिप्पणी संवाद शुरू करने का भी एक सदाबहार तरीका है। जब लोगों के पास संवाद के लायक ज्यादा कुछ नहीं होता, तब भी मौसम पर बात कर अक्सर संवाद को आगे बढ़ा दिया जाता है। हमारे यहां यह कहना बहुत ही आम है कि आज सर्दी बहुत है या गर्मी बहुत है या बारिश पता नहीं कब होगी। मौसम के नाम पर भारतीय आम तौर पर असंतुष्टि और बेहतर मौसम के इंतजार का भाव लिए हुए ही रहते हैं। मौसमों से जुड़े पर्व और पकवान भी मौसम की अहमियत को दिखाते हैं। हमारे यहां मौसम सिर्फ किसान के काम की बात नहीं है, मौसम जिंदगी का फलसफा है।
खैर, तो अब मौसम चैनल आने वाला है। खुशी की बात है। लेकिन इस खुशी को बनाए रखना कोई आसान काम नहीं होगा क्योंकि हमारे यहां मौसम की भविष्यवाणी वैसे ही गाहे-बेगाहे मजाक का विषय बनती रही है। फिर कामन वेल्थ गेम्स की वजह से इसके साथ इस बार प्रतिष्ठा भी जुड़ी होगी।
दरअसल चैनल शुरू करने की योजना बनाना और सरकारी खजाने से लबालब पैसा पा लेना आसान हो सकता है लेकिन चौबीसों घंटे के सफेद हाथी को खिलाते-पिलाते-पालते रहना नहीं। चैनल के लिए प्रोग्रामिंग क्या और कैसी होगी, टीम कैसी होगी, कंटेट पर फैसला कौन लेगा, रीसर्च कहां से होगी, पुरानी फुटेज का जुगाड़ कहां से होगा, यह कुछ ऐसे सवाल हैं जिनसे चैनल शुरू करने से काफी पहले निपटना होगा।
अगर ऐसा न हुआ तो मौसम चैनल को महज कॉमेडी बनने में कोई ज्यादा देर नहीं लगेगी। उम्मीद है कि चैनल के विचारकों और नीति-निर्धारकों तक गरज के साथ छींटे पहुंच रहे होंगे।
9 Responses
निःसंदेह देश में मौसम से सम्बंधित चैनल होना अति आवश्यक हैं, आपकी पोस्ट अच्छी लगी… जिसमें हर बात खरी-खरी लिखी है.. मौसम की समान्य जानकारी के अतिरिक्त भूकंप का पूर्वानुमान भी यदि इस चैनल के जरिये सही-सही ज्ञात होने लगे तो बड़ी आपदा के पूर्व कुछ सुरक्षित हो जाने के चांस बनेंगे!
सही बात है
पता नहीं कब से कह रहे थे कि 15 तक तो मानसून आ ही जाएगा
पर आज 27 जून हो गई एक बूंद भी नहीं बरसी
आलम यह है कि अगर 30 तक न बरसी तो जयपुर में पीने के पानी तक की किल्लत हो जाएगी।
mausam ka mizaj
kaun bhanp saka
tare niklenge bola
to badal chh gaye
bola hogi varsha
to garam chali looen
isi liye kaha
kisi kavi ne
mausam ki tarah
tum bhi badal
to na jaoge
वर्तिका जी, वैसे तो मौसम के माध्यम से बहुत कुछ दिखाया जा सकता है इस चैनल पर—लेकिन–समाचार चैनलों का क्या प्रभाव और हश्र हो रहा है वह सभी देख रहे हैं।——–आपकी चिन्ता जायज है कि इस चैनल का टोटल प्रजेन्टेशन क्या होगा,कन्टेण्ट,रिसर्च—फ़ुटेज—-का कौन जिम्मेदार होगा–और ओवर आल क्या इम्पैक्ट डाला जायेगा दर्शकों पर—ये कई बिन्दु हैं जो इसकी सफ़लता असफ़लता को निर्धारित करेंगे।
पता नहीं मौसम चैनल कितना उपयोगी रहेगा । हमारे देश में मौसम घडी घडी तो बदलता नहीं है । अमेरिका , कनाडा जैसे देशों में तो लोग मौसम का हाल जानकर ही अपनी दिनचर्या का निर्णय लेते हैं । लेकिन यहाँ तो महीनो कुछ बदलाव नहीं होता । फिर जानकर क्या करेंगे । कही ये १५६ करोड़ रुपया पानी में तो नहीं जा रहा ।
well analysis
सार्थक पोस्ट
बहुत बढ़िया पोस्ट.
मौसम के बारे में समाचार महत्वपूर्ण तो होते हैं लेकिन इस बात पर शंका बनी रहती है कि दी जानेवाली जानकारी कितनी विश्वसनीय है. मेरे ख्याल से चैनल शुरू करने से पहले अगर मौसम की जानकारी प्राप्त करने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार हो जाता तो ज्यादा अच्छा होता. लेकिन देखते हैं. कोई न कोई योजना तो बने होगी सरकार ने.
मौसम चैनल की बात सुनकर तो मुझे अभी से घबराहट हो रही है। बाकी समाचार चैनलों पर जिस तरह अपराध की खबरें सनसनी के साथ प्रस्तुत की जाती थीं या हैं क्या उसी तरह मौसम चैनल पर लैला के आने की खबर प्रसारित होगी। आप सही कह रही हैं मौसम का चैनल कहीं सचमुच में मजाकिया चैनल न बन जाए।