खबरिया चैनल हंसी का पात्र कई बार बने हैं, बनेंगे लेकिन वे जानबूझकर भी दर्शक को हंसाने का ज़िम्मा लेने लगेंगे, यह बात खुद मीडिया विश्लेषकों को अचंभे में डालने वाली रही।

आम दर्शक ने शायद कभी सोचा भी नहीं होगा कि उसे खुश रखने के फेर में धीर-गंभीर माने जाने वाला न्यूज़ मीडिया एक दिन मसखरे का काम भी करने लगेगा। बेचैन करवटें बदलते-बदलते अब एक नया मीडिया सामने है। मीडिया के इस नटखट पुर्जे के पास समाचार पत्रों की ललक है, रेडियो को हम भारत में देख रहे हैं, वैसा दुनिया में कहीं नहीं। शायद यही वजह है कि सबकी नजरें भारतीय मीडिया पर आ टिकी हैं और मीडिया की नज़र मुनाफे की उस पोटली पर है जो उसे टिकाए रखने का सबसे पुख्ता स्तंभ है। इसी मजबूरी ने मीडिया को एक प्रयोगशाला बना डाला है। नए प्रयोगों की इस गहमागहमी में दिखती है- हंसी। बरसों पहले दूरदर्शन पर शाम सात बजे क्षेत्रीय समाचार और रात नौ बजे राष्ट्रीय समाचार प्रसारित होते थे। उन समाचारों को बचपन में देखा-सुना और दिमाग ने समझा कि समाचार का मतलब है- ऐसा कुछ जो बेहद गंभीर है। इसलिए बड़ों की तरह कभी भी बेताबी से समाचारों का इंतजार करने की इच्छा नहीं जगी। पर समय बदला, कुछ ऐसा कि विश्वास से ज़रा परे। जब निजी चैनल जब पैदा हुए तो उन्होंने दूरदर्शन को पटखनी दी। शुरुआत खबर के प्रस्तुतिकरण की चुस्ती और कुछ बेहतर तकनीकी सामान से हुई। चैनलों में पुराने चेहरों की जगह नई बयार ने ले ली लेकिन जब प्रतियोगिता बढ़ी तो शिकन को भी बढ़ना ही था। तब राजनीति, अपराध और खेलों को पहले पायदान पर रखकर जनता की गुहार लगायी गई लेकिन धीरे-धीरे समझ में आने लगा कि जनता को अब मुस्कुराहट की भी ज़रुरत है। न्यूज़ चैनल ऐसा हो जो सूचना भी दे और खुशी भी। इसलिए अब न्यूज चैनलों में हास्य की रेलमपेल दिखने लगी है। एनडीटीवी के पास अगर छुपा रुस्तम है तो सीएनएन आईबीएन के पास साइरस बरुचा, ज़ी के पास कलयुग का रामराज है तो स्टार के पास पोल-खोल, आईबीएन सेवन में खबरों के बीच हास्य कवियों की फुहार महसूस होती है तो आज तक जैसे कई चैनलों के पास दिखती है – हास्य कवियों की मसखरी को दिखाने का समय।

लेकिन ऐसा हुआ क्यों- इसे छानना कम मज़ेदार नहीं। ऐसा नहीं है कि न्यूज़ चैनलों को हंसी एकाएक भाने लगी है बल्कि इसमें छिपी व्यापार और उम्र के परे हर दर्शक को बांध लेने का सामर्थ्य बड़ी ताकत का काम कर गया है। अभी कुछ साल पहले तक अखबारों के कोनों में खूब चुटकुले छपा करते थे जिन्हें गाहे-बगाहे लोग पढ़ा करते थे। फिर टीवी का दौर चला तो दूरदर्शन कवि सम्मेलनों के लिए रंगीन कालीन बिछाने लगा। कई बार कवि सम्मेलन अ-झेल हो जाते लेकिन उन में भी कभी-कभी हास्य का छौक लगा दिया जाता तो जनता ज़रा मदमस्त हो जाती। उस दौर के जो गिने-चुने हास्य कवि पैदा हुए, वो कई दर्शकों के चहेते बन गए।

लेकिन इस हंसी को कभी भी विशिष्ट दर्जा नहीं मिला। हास्य हाशिए पर रहा। माना गया कि वह निचले दर्जे की चलताऊ आइतम है। वह खाने में चटनी का काम करते दिखा लेकिन उसे प्राथमिकता कभी नहीं मिली।

लेकिन न्यूज़ मीडिया अब इस सच को समझने लगा है कि हास्य समाचार को बेचता है। वह समाचार को सजाने और मसालेदार बनाने का काम करता है, वह तमाम सीमाओं के परे दर्शक को खीचने का माद्दा रखता है और सबसे बड़ी बात वह उन तमाम बातों को बड़े मज़े से कह सकता है जिन्हें खबर के साचे में ढाल कर कहना कई बार शायद उतना आसान न हो। वैसे भी जब व्यापार की बात आती है तो तुरंत सबक लेने में मीडिया जैसा माहिर कोई नहीं। दस साल के भीतर ही मीडिया ने हिन्दी में व्यापार की खुशबू महसूस की और नए पैदा हुए कथित अंग्रेजों के इस देश में टीवी पर हिंदी काबिज हो गई। यहाँ तक कि राजनीति में भी वही नेता ज्यादा समय तक लोगों के दिमाग पर हावी हुए जो या तो हिंदी भाषा थी या क्षेत्रीय भाषा में बतियाने में शर्म महसूस नहीं करते थे।

यहाँ यह भी गौर करने लायक है कि 20 प्रतिशत की वार्षिक दर से फैल रहे टेलीविज़न मीडिया में भले ही संभावनाएं अपार हैं लेकिन यहाँ जो जीतेगा वही होगा सिकंदर। हंसाना अब मीडिया की मजबूरी है लेकिन हंसी तो चार्ली चैप्लिन की भी थी। जब भी हंसते हुए दर्द की बात होती है तो पहला नाम भी चार्ली का ही आता है। आज जब ख़बर में दर्द, विद्रूपता, भूख, गरीबी, तनाव, परेशानी के कई रंग घुल गए हैं, अगर हंसी, हंसी- हंसी में इस दर्द को भी अपने में समेट ले तो न्यूज़ मीडिया को वाकई कोई हंसी में नहीं लेगा।

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7 Responses

  1. बिल्कुल सही बात। हँसाते तो चार्ली भी थे पर उनकी हँसी मे एक दर्द, एक कटाक्ष भी होता था। प्रयोग के तौर पर मैने भी ये कार्यक्रम देखे है पर आज तक हँसा नही। पर एक खीझ सी उठती है ।

  2. बहुत-बहुत अच्‍छा लगा आपका लेख. मसखरापन तो अब यहां इतना हो गया है कि समाचारों के लिए केवल इंटरनेट ही एक विकल्‍प नजर आता है….

    आज अचानक ब्‍लॉगवाणी पर आपको देखा. अच्‍छा लगा कि आप भी ब्‍लॉग जगत में हैं. लोकसभा चैनल पर आपको देखता था….अब ब्‍लॉग जगत में ही आपसे कुछ न कुछ सीखने को मिल जाएगा…

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