चंचल –
यही नाम था उसका
जब दिल्ली में बम फटा तो
उसने अपने कंधों को खून भरे कराहते लोगों को
उठाने में लगा दिया
बाहें उस लड़की को बचाने को मचल उठीं
जो अभी-अभी हरी चूड़ियां खरीद कर
दुकान से बाहर आई थी।

चंचल भागा
एक-एक को उठा सरकारी अस्पताल की तरफ।

वो हांफ गया।

पत्नी का फोन आया इस बीच –
कि ठीक तो हो
वो बोला – हां आज जी रहा हूं
दूसरों को बचाते हुए
सुनाई दे रही है
जिंदगी की धड़कन
इसलिए बात न करो
बस, जज्बातों के लिए बहने दो।

वो खुद खून से लथपथ था।

तभी कैमरे आए
पुलिस भी।

सायरनों के बीच
कोई लपका
चंचल को उठाने
वो बदहवास जो दिखता था!

लेकिन वो बोला- वो ठीक है
जिंदगी अभी उसके करीब है।

चंचल कुछ घंटे यही करता रहा
उसके पास उसके कंधे थे
और अपना हाथ था जगन्नाथ

एक कैमरे ने खींची उसकी तस्वीर(और छापी भी अगले दिन)
लेकिन चंचल रहा बेपरवाह।

जब उसके हिस्से का काम खत्म हुआ
वो चल निकला।

अब उसने वो खाली-बिखरी जगह
मीडिया, पुलिस और नेताओं के लिए छोड़ दी।

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15 Responses

  1. आपने अपना प्रोफाइल ऐसे बनाया है कि कोई और आपके बारे में बता रहा है। ब्लॉग तो आपका है।

  2. आपने अपना प्रोफाइल ऐसे बनाया है कि कोई और आपके बारे में बता रहा है। ब्लॉग तो आपका है।

  3. मार्मिक रचना!
    ऐसे कितने ही चंचल उस विस्फोट के धुएँ में खो गए…
    जरी रहे…
    इतनी मार्मिक रचना के लिए आभार…

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