(1) लगता है
दिल का एक टुकडा
रानीखेत के उस बड़े मैदान के पास
पेड़ की छांव के नीचे ही रह गया।
उस टुकड़े ने प्यार देखा था
उसे वहीं रहने दो
वो कम से कम सुखी तो है।
(2) 
पानी में जिस दिन कश्ती चली थी
तुम तब साथ थे
तब डूबते-डूबते भी लगा था
पानी क्या बिगाड़ लेगा।
(3)
लगता था भरा
लेकिन खाली था
और जो असल में भरा था
उसे देखने की हिम्मत कहां थी।
 (4)
लो, तुम्हें यह कविता दिखती है
ध्यान से देखो
यह सिरहाना है
आंसू इनमें बसेरा डालते हैं
इन्हें ऊंची आवाज में न बांचना
कब्रगाह में वैसे ही काबिज है कंपन
(5)
पहले तो देर से ही आए
फिर जाने की लगी रही झड़ी
आने-जाने की फेहरिस्त में
पता न चला
और वक्त आ गया
 (6)  
ले चलो फिर से
लेह के उस मठ के पास
जहां बच्चे कात रहे थे सूत
लगा था बार-बार
मिल रहे थे वहां बुद्ध
मैं भी तब कहां थी सुध में
उस दिन समय
गोद में आकर सो गया था
काश ! समय की नींद जरा लंबी होती।
 (7)
ये अपनापे की ही ताकत थी
सन्नाटे में जो जुगनू दिखे
अपनापा गया
बस डर रह गया
 (8)
चाहत अब भी एक ही है
तुम से शुरू होती है
वहीं विराम लेती है
चाहत की डोर इतनी लंबी
जिंदगी क्या चीज है
 (9)
चाहो तो बेवफा कह लो
या कह लो बेहया
यह औरत ही थी
सिलवटों में भी
उधड़-उधड़ कर
खुद को बुनती रही।
(10)
धूप थी
तो मन्नत थी बरस जाए बदरा
बदरा आए
तो मनन्त थी थम जाए
थमी तो
मन्नत थी
सर्द हवा में छीलते मूंगफली
सब आता-जाता रहा
पर मन्नतें वहीं झूलती रहीं हवा में बिगड़े नवाब सी।

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13 Responses

  1. चाहो तो बेवफा कह लो
    या कह लो बेहया
    यह औरत ही थी
    सिलवटों में भी
    उधड़-उधड़ कर
    खुद को बुनती रही।

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति……

  2. वर्तिका जी
    अभिवंदन

    आपकी दसों क्षणिकाएँ एक एक कर के पढीं.
    बहुत ही सधी हुई भाषा और भाव हैं.
    यकीन मानिए मुझे बेहद पसंद आयीं.
    यूँ ही लिखती रहें.
    आपका
    – विजय

  3. शब्दों की गरमाहट..लगता है सपनों से अभी अभी जागे हैं….

  4. एक सपना देखा अभी,
    आधी रात को
    और फिर नहीं लगी आंख…
    अब धुंधला सा याद है बस
    सीढ़ीदार खेत थे पहाड़ियों के…
    और एक ढलान पर एक गांव
    सीढ़ियों के रास्ते वाला गांव
    टूटी सीढ़ियां… पहाड़ी लाल पत्थरों की
    बीच में कुछ घर थे…
    बुरांश के पेड़ों से ढंके…
    एक हाथी था…
    उस पर इंद्र…
    उसकी शक्ल मिलती थी मुझसे बहुत कुछ
    वो स्वर्ग था…
    आज रात में फिर स्वर्गवासी हुआ…
    ———-
    मुझे फेंक दिया किसी ने वहां से
    शायद चुक गये थे मेरे पुण्य पिछले जन्मों के
    या शायद मंहगा था वो स्वर्ग
    मिट्टी के कुल्हड़ों वाला…
    गर्म दूध वाला…
    चढ़े और ढ़ले रास्तों वाला…
    उस पहाड़ी का वो गीला मौसम
    बहुत याद आता है…
    और तुम भी,
    गीली- गीली…
    —————–
    तुम्हारी याद को लिख लेता हूं सबके लिये
    ये सोचे बगैर कि सब सवाल करेंगे
    और निरुत्तर हो जाऊंगा मैं…
    तुम्हारी याद को रख लेता हूं बटुए की उस जेब में…
    जहां रखा है शगुन का सिक्का,
    कि पर्स खाली न रहे कभी…
    तुम्हारी याद को सी लिया है आज
    फटे घाव के साथ…
    कि तुम मिल जाओ मेरे खून में…
    और अगले जन्म में…
    बेटा बनूं तुम्हारा…
    या
    तुम बेटी मेरी।
    ये वादा रहा…
    ——————
    देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
    http://deveshkhabri.blogspot.com/

  5. आपने बहुत सही बात लिखी क्यों हम दूसरो की जिंदगी में ताक झांक करते है लेकिन आप भी कहीं ना कहीं इस फितरत से ताल्लुक रखती है..इसलिए हर बात लिखने से पहले अपने आप पर भी थोड़ा गौर फरमाया करे क्योंकि कई बार जो चींज जितनी मासूम होती है उसकी हकीकत उतनी ही बुरी होती है

  6. आप की इन कविताओं को पढ़कर महसूस हो रहा है कि आपके जीवन में कुछ ऐसा दुख है जिसे आप ना तो बता पा रही है और ना ही उस परेशीना से दूर हो पा रही है

  7. छोटे छोटे वाक्यों में जादुई अहसास
    जैसे भीनी सी बारिश हो और मन कभी मुस्कुरा उठे कभी उदास हो जाए
    सचमुच का इंद्रजाल
    बार बार पढने का मन किया

  8. Namaste
    Today I chanced upon a new discovery and a very pleasant one that Vartika Nanda is such an excellent poet. I cannot resisit myself from commenting that the poetess is much better than her Media personna. Poems are so fresh owing only to honesty. I feel fresh after going through.
    Have you published any collection?

    my best wishes.
    Gunjan Sinha.

  9. Very honesly expressed with fresh imegery. Ye bhav man ko naa jaane kahan-kahan udsa le gaye. Bilkul titli ki tarah. Inmen sondhi mitti ki mahak hai. Yun hi likhti rahen.
    Bhuvendra Tyagi

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