रानियां सपने नहीं देखतीं
उनकी आंखों में सपने तैरते ही नहीं

वे अधमुंदी भारी पलकों से रियासतें
देखती हैं
सत्ताओं के खेल
राजा की चौसर

वे इंतजार करती हैं
अपने चीर हरण का
या फिर आहुति देने का

वे जानती हैं
दीवार के उस पार से होने वाला हमला
उन्हें ही लीलेगा पहले

पर वे यह भी जानती हैं
गुलाब जल से चमकती काया
मालिशें
खुशबुएं
ये सब चक्रव्यूह हैं

वे जानती हैं
पत्थर की इन दीवारों में कोई रोशनदान
नहीं
और पायल में दम नहीं

चीखें यहीं दबेंगीं
आंसू यहीं चिपकेंगें
मकबरे यहीं बनेगें
तारीखें यहीं बदलेगीं
पर उनकी किस्मत नहीं
रानियां बुदबुदाती हैं
गर्म दिनों में सर्द आहें भरतीं हैं
सुराही सी दिखकर
सूखी रहती हैं – अंदर, बहुत अंदर तक

राजा जानते ही नहीं
दर्द के हिचकोले लेती यही आहें
सियासतों को, राजाओं को
मिट्टी में मिला देती हैं

राजा सोचा करते हैं
दीवारें मजबूत होंगी
तो वे टिके रहेंगें

राजा को क्या पता
रानी में खुशी की छलक होगी
मन में इबादत
हथेली में सच्चे प्रेम की मेहंदी
तभी टिकेगी सियासत

रानियां सब जानती हैं
पर चुप रहती हैं
उनकी आंखों के नीचे
गहरे काले धब्बे
भारी लहंगे से रिसता हुआ खून
थका दिल
रानी के साथ चलता है
तो समय का पहिया कंपकंपा जाता है

सियासतें कंपकंपा जाती हैं
तो राजा लगते हैं दहाड़ने
इस कंपन का स्रोत जानने की नजाकत
राजा के पास कहां है भला

रानियां जो जानती हैं
वे राजा नहीं जानते
न बेटे
न बंदियां

हरम के अंदर के हरम के अंदर हरम
तालों में
सींखचों में
पहरे में

हवा बाहर ठहरती है
सुख भी
परमानंद भी

रानियां सब जानती हैं
पर मुस्कुराती हैं
मुस्कुराहट चस्पां है
बाकी भाव भी बाहर हैं पत्थरों की
दीवारों के
दफन होंगे यहीं

रानियां जानती हैं
चाहे कितने ही लिखे जाएं इतिहास
फटे हुए ये पन्ने उड़ कर बाहर जा नहीं
पाएंगें

रानियों के पास कलम नहीं है
सत्ता नहीं
सुख नहीं

पर उनके पास सच है
सच के तिनकों की चाबी भी
राजा के ही पास है

हां, रानियां
सब जानती हैं

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3 Responses

  1. राजा जानते ही नहीं
    दर्द के हिचकोले लेती यही आहें
    सियासतों को, राजाओं को
    मिट्टी में मिला देती हैं

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