लड़की का बलात्कार हुआ था
मीडिया पूछ रही थी
कैसा लग रहा है उसे
जिस युवक ने किया था
शादी का वादा
वो उसके घर का रास्ता
अब खोज नहीं पाता
अब है फिर पास वही मां
मीडिया पूछ रही थी
कैसा लग रहा है उसे
जिस युवक ने किया था
शादी का वादा
वो उसके घर का रास्ता
अब खोज नहीं पाता
अब है फिर पास वही मां
सहारा देने की ताकत पुरूष में कहां
इस ताकत के कैप्सूल अभी बने नहीं
14 Responses
वर्तिका, चंद पंक्तिंयों में बहुत गहरा फलसफा बयां कर दिया है आपने। अभी तक मैं आपको एक पत्रकार के अलावा एक कहानी लेखक के रूप में ही जानता था, तब से जब आपने दैनिक ट्रिब्यून की कहानी प्रतियोगिता में पहला पुरस्कार जीता था। उन दिनों दैनिक ट्रिब्यून से जुड़ाव शीर्षक बताओ प्रतियोगिता के प्रतिभागी के रूप में था। आज अनायास आपके ब्लॉग पर जाने का मौका मिला तो पता चला कि कविताएं भी शुरू से लिखती रही हैं। कुछ पंक्तियों में दर्द बुनकर कविता की शक्ल देने के लिए बधाई। आगे भी लिखती रहिए।
bilkul sahi kaha aapne
Main tumahre lekh to parti rahti hoon lekin aaj pehli baar tumahri kavitayen padi.
mujhe lagta hai ki tumahri kavitaon mein lekhon se adhik vyangy aur sahi evan steek ktaksh hai. kum shabdon mein sahi Ktaaksh. Isliye kavita likhna band nahin hona chahiye. badaai… annu anand
प्रिय नन्दा जी, आज आपका आपका ब्लॉग देखा। मीडिया स्कूल….मीडिया की लय को समझने सीखने का एक मंच। ये बहूत ही शानदार प्रयास है आपका। मुझे ब्लॉग देखते ही लगा था कि यहां कुछ अलग होगा। और बातें मीडिया के अन्दर से होगी। आपका ब्लॉग आपके लिए एक शानदार मौका है, अगर आप खबर या जानकारी जूटा पाती हैं। आप अपने ब्लॉग को और लोगों की भातीं ही परोस रही है, मैं समझता हूं इसको भीड़ में खो देने के लिए आपने नहीं बनाया होगा। मीडिया के अन्दरूनी चेहरों के बारे में बात करों, लोगों को बताओं जो वो जानना चाहतें है, जिसमें उनकी जिज्ञासा बढ़ेगी। पुरानी घीसी-पीटी बातों में एक और पोस्ट जोड़ देना कोई नयापन नहीं लाएगा। मीडिया के चेहरो पर अपनी राय और शोध को सामने लाओं। बरखा दत्त, प्रणव राय, अविनाश, राजदीप, दींबागं, रजत जी, अजीज बर्नी, प्रीतिश जी ना जाने कितने ऐसे नाम है। जिनकी हकिकत लोगो को नही पता। ये किस तरह के व्यक्ति है। क्या करते है। कैसे आगे आए है। क्या इनका स्टाइल है। कितने लोग जानते है कि बरखा दत्त किसी चीज को पाने के लिए किस तरह से एक अक्रामक रूप धारण कर लेती है या फिर कैसे दीपक चौरासया पैसे के बदले खबरें बेचना जानता है, न जाने कितनी बातें है। मुझे आपका ब्लॉग देखकर लगा कि आपको ये कहना चाहिए तो कह दिया। बहुत बहुत शुभकामनाओं के साथ
इरशाद
bahut kam shabdo me aapne bhaut acchi baat kahi hai…
bahut khub
दर्दनाक भी और सच भी।
बेहद भावपूर्ण रचना है . यह सत्य है कि कभी कभी मीडिया द्वारा मर्यादा का उल्लंघन कर दिया है जिसका विरोध किया जाना चाहिए . महिलाओं कि भी अपनी गरिमा होती है यह मै मानता हूँ.
माँ के सामने बाकी सब तुच्छ है. उसके आगोश में जो सुरक्षा है वह अन्यत्र नहीं मिल सकता. सुंदर लिखा है. आभार.
सच का सशक्ती से भावपूर्ण प्रस्तुतीकरण.
आभार.
रजनीश के झा
truth of life
कविता और विचारों की
ताकत के आगे
सारी ताकत बौनी हैं
।
मां सी ताकत
किसी में भी मिलना
बिल्कुल अनहोनी है।
sab kuchh sach bhi nahi…ek chashmey se sab kuchh na dekhey…
बेहतरीन प्रस्तुति
बहुत सही!