कोशिश सिर्फ इतनी थी
लिफाफे में बंद कर खत भेजूं
चंद लफ्ज़ हों
चंद कतरे छिटकती जिंदगी के।

बहुत बंद किया लिफाफे को मैनें
लगा दिए तमाम औजार
अपनी शक्ति
पर लिफाफा भारी हो ही गया
उससे झरने लगे
मेरे मन के मलमली पत्ते – यहां-वहां
अब खुला खत कैसे भेजूं ?

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6 Responses

  1. sari batein ek hi khat mein undelna kahan tak tarksangat hai. prayas yahi ho ki khat niyamit antaral par likhe aur bheje jayein.Agar aisa nahi ho paye to phir iski kya ahmiyat rah jayegi……..
    Achchhi rachna hai aapki. Pasand aayi.
    Navnit Nirav

  2. खुला खत कैसे भेजूं ?
    ज़ज्बात को इतने करीने से सजाया है. वाह – बहुत खूब

  3. वर्तिका जी आपकी रचना बेहद अच्छी लगी . आप निरंतर लिखती रहे. धन्यवाद.
    आपकी रचना पढ़ कर मुझे ये गाना याद आ गया है .
    लिखा जो ख़त तुझे ….वो

  4. वर्तिका नन्दाजी,

    "पर लिफाफा भारी हो ही गया

    उससे झरने लगे

    मेरे मन के मलमली पत्ते – यहां-वहां

    अब खुला खत कैसे भेजूं ?"

    बहुत ही सुन्दर रचना, पढकर आत्मविभोर हो गया।

    आभार।

    हे प्रभु यह तेरापन्थ

    मुम्बई टाईगर

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