देश की 1382 जेलों की बदहालत ने अब सुप्रीम कोर्ट को सामने आने पर मजबूर कर दिया है. राजस्‍थान लीगल सर्विस अथॉरिटी के खुली जेलों पर किए गए शोध और बाद में स्‍मिता चक्रवर्ती और गौरव अग्रवाल के प्रयासों ने खुली जेलों को बहस के केंद्र में ला खड़ा किया है. दिसंबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने गृह मंत्रालय को सभी राज्‍यों और केंद्र शासित प्रदेशों से खुली जेलों पर अपनी स्थिति को साफ करने के लिए कहा था. उसके जवाब में इस साल फरवरी में हुई बैठक में खुली जेलों की प्रशासनिक जरूरतों पर खुलकर चर्चा की गई. यहां यह भी जोड़ा जा सकता है कि बंदियों के साथ व्यवहार के लिए न्यूनतम मानक निर्धारित करने हेतु संयुक्त राष्ट्रीय नियम 2010, भारत में मॉडल प्रिजन मैन्यूल और 2017 में जेलों में कैद महिला बंदियों को लेकर संसदीय समिति की रिपोर्ट- हिरासत में महिलाएं और न्याय ने जेलों को लेकर कई जरूरी मुद्दों की तरफ ध्यान दिलाया है. अब यह माना जाने लगा है कि जेलों को सुधार गृह बनाने के लिए उनमें बुनियादी परिवर्तन लाने होंगे. इनमें खुली जेलों का होना सबसे अहम है.
दरअसल खुली जेल एक ऐसी जेल होती है जिसमें जेल के सुरक्षा नियमों को काफी लचीला रखा जाता है. ऐसी जेलें आमतौर से केंद्रीय जेल से बाहर स्थापित की जाती हैं और सलाखों से तकरीबन आजाद होती है. ऐसी जेलों में रहने वाले बंदी दिन के समय बाहर कहीं भी जा सकते हैं, लेकिन उन्‍हें एक निश्‍चित समय के बाद शाम में उसी जगह पर लौटना होता है. ऐसी जगह में बंदी के भागे जाने के डर को ध्‍यान में रखते हुए किसी तरह की सुरक्षा का दबाव नहीं रखा जाता. इन जेलों में बंदियों को आत्‍मानुशासन और खुद अपनी रोटी अर्जित करने पर जोर दिया जाता है. इसमें एक बड़ी बात यह भी है कि इन बंदियों से बाहर के लोग आकर मिल सकते हैं. ऐसे में यह बंदी भी धीरे-धीरे अपने आप को समाज में लौटने के लिए तैयारी का अवसर पा लेते हैं. इस तरह की खुली जेल का मकसद जेलों में बढ़ती भीड़ पर काबू पाना, बंदियों को उनके अच्‍छे व्‍यवहार के लिए एक मौका देना और उन्‍हें समाज में लौटने के लिए फिर से तैयार करना होता है.
दुनिया में पहली खुली जेल स्‍वीट्जरलैंड में 1891 में बनी थी. उसके बाद अमेरीका में 1916 में और ब्रिटेन में 1930 में बनाई गई. साल 1975 आते-आते अमेरीका में खुली जेलों की संख्‍या 25 हो गई, जबकि इंग्‍लैंड में 13 और भारत में 23. भारत में पहली खुली जेल 1905 में बम्‍बई में बनी और इसमें थाणे केन्‍द्रीय जेल, बम्‍बई के खास बंदियों को रखा गया. लेकिन इस खुली जेल को 1910 में बंद करना पड़ा. उत्तर प्रदेश में अनाधिकृत तौर पर खुली जेल का पहला कैंप 1953 में बनाया गया. इसका मकसद वाराणसी के पास चंद्रप्रभा नदी पर एक बांध बनाना था. इस कैंप की जबरदस्‍त सफलता को देखते हुए 1956 में उत्‍तरप्रदेश के शहर मिर्जापुर में भी ऐसा ही प्रयोग किया गया.
इस समय भारत में कुल 63 खुली जेलें हैं. इसी खुली जेल को लेकर सितम्बर 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश दिया कि पूरे देश में खुली जेल के कॉन्सेप्‍ट को जल्‍दी से जल्‍दी लागू किया जाये. इनमें यरवदा, तिरुअनंतपुरम और राजस्‍थान में दुर्गापुर और सांगानेर में महिलाओं के लिए खुली जेल का प्रावधान है. 2010 में पुणे में देश की पहली महिला खुली जेल को शुरू कर दिया गया. बाकी 59 खुली जेलों में महिलाओं को रखने की कोई सुविधा नहीं है. बाकी राज्यों में महिला खुली जेल को लेकर हिचक बनी रही है. यहां यह भी जोड़ा जा सकता है कि पूरे देश में इस समय 1382 जेलें हैं जिनमें से महिलाओं के लिए सिर्फ 18 ही हैं.
मौजूदा समय में खुली जेलों में करीब 100 से 1000 तक बंदी रखे जाते हैं. लेकिन डकैती और फर्जीबाड़े जैसे अपराधों में लिप्‍त रहे बंदियों और महिलाओं का इस जेल के लिए चुनाव नहीं किया जाता. इन्हीं खुली जेलों को लेकर जस्टिस मदन लोकूर और दीपक गुप्‍ता ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि अब भारत में खुली जेल की तादाद को बढ़ाना होगा. अभिनेता संजय दत्‍त की जारी की हुई जनहित याचिका के वजह से इस फैसले को लिया गया है. संजय दत्‍त ने महाराष्‍ट्र की जेलों में पांच साल का समय गुजारा था. जनहित याचिका को संज्ञान में लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 11 निर्देश दिए हैं. इनमें जेल सुधार को लेकर सभी राज्‍यों को तुरंत कार्यवाही करने के लिए कहा गया है. सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि अब समय आ गया है कि सभी राज्‍य खुली जेलों के सिद्धांत का गंभीरता से अध्‍ययन करें और उसे अमल में लायें. इस फैसले में शिमला और दिल्‍ली की तिहाड़ जेल का खास उल्‍लेख किया गया है.
यह बात गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश में सोमेश गोयल और दिल्‍ली में विमला मेहरा और अजय कश्यप जैसे प्रभावशाली आईपीएस अफसरों के कार्यकाल में खुली जेल और अर्धखुली जेल काफी विकसित हुई हैं. भारत में तेलंगाना और मध्य प्रदेश में होशंगाबाद की खुली जेलों ने आधुनिक तरीके से कायाकल्प किया है. इसी तरह राजस्थान की जेलों का सर्वे करने पर सामने आया कि जेलों में बंद कई कैदियों का आचरण अच्छा है लेकिन खुली जेलों की संख्या और उनकी क्षमता कम होने की वजह से बंदियों को जेल की चारदीवारी में बंद रहना पड़ता है. मानद जेल कमिश्नर समिता चक्रवर्ती ने यह पाया कि जेलों में 90 फीसदी कैदी ऐसे हैं जो आदतन अपराधी नहीं है. लेकिन दुर्घटनावश अपराध कर बैठे और उन्हें सजा हो गई. उन्होंने भी यह मांग की थी कि ऐसे कैदियों को खुली जेलों में शिफ्ट की जाने की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए. अकेले सांगानेर खुली जेल में साढ़े चार सौ से ज्यादा बंदी रहते हैं. राजस्थान में 1955 में पहली खुली जेल की स्थापना की गई थी, जिसका परिणाम काफी अच्छा रहा.
सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में अफसरों के लिए ट्रेनिंग और बंदियों के लिए उनके अधिकारों पर कार्यक्रम आयोजित करने पर भी जोर दिया है. इसके अलावा माहिला और बाल विकास मंत्रालय से भी कहा गया है कि वह जेलों में बच्‍चों और महिलाओ की देखभाल को लेकर अपने काम को आगे बढ़ाए. यहां यह जोड़ना जरूरी है कि देश भर में करीब 1800 बच्‍चे अपनी माता या पिता के साथ जेल में रहते हैं और उन्‍हें सिर्फ 6 साल तक ही उनके साथ जेलों में रहने की इजाजत होती है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्‍यूरो के मुताबिक भारत में पिछले 15 सालों मे जेलों में बंद होने वाली महिलाओं की संख्‍या में 50 प्रतिशत की बढोतरी हुई है. इसी तरह पिछले एक दशक में 477 महिला बंदियों की मौत जेल के अंदर हुई है.
ऐसे में खुली जेलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का निर्देश मील का पत्‍थर साबित होगा, लेकिन इसे लागू करना इतना आसान नहीं लगता. जेलों में करीब 80 प्रतिशत बंदी विचाराधीन है और न्‍यायिक प्रक्रिया अक्‍सर बहुत लंबा समय लेती हैं. भारत में 149 जेलों में 150 प्रतिशत से ज्‍यादा भीड़ है यानी देश की जेलों में अपनी संख्‍या से कम से कम 18 प्रतिशत ज्‍यादा बंदी रखए गए हैं. आज भी इन जेलों में अपनी तय संख्‍या से बंदियों को सही ढंग से रखे जाने को कोई प्रावधान नहीं बन सका है. जेलें सामाजिक और प्रशासनिक दोनों ही स्‍तरों से अनदेखी का शिकार होती हैं. जस्टिस मुल्‍ला और जस्टिस कृष्‍णा अय्यर रिपोर्ट में दी गई सलाहें अब भी पूरी तरह से लागू नहीं हो पाई हैं. इससे जेलों में भीड़ का बढ़ना स्‍वभाविक है.
देश का सबसे बड़ा राज्‍य होने के बावजूद उत्‍तरप्रदेश में एक भी खुली जेल नहीं है. दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी जेल तिहाड़ में सिर्फ एक खुली जेल है जिसमें फिलहाल 10 बंदी हैं और इनमें एक भी महिला बंदी नहीं है. गुजरात में 3 खुली जेलें हैं और चौथी का काम चल रहा है, जबकि महाराष्‍ट्र में 13 खुली जेलें हैं और इनमें से 2 महिलाओं के लिए हैं. यहां 6 और खुली जेलें बनाने का काम चल रहा है. हिमाचल प्रदेश में 7 खुली जेलें हैं, जबकि मध्‍यप्रदेश में होशंगाबाद में एक खुली जेल है. यहां पर 10 नई खुली जेलें बनाने का काम चल रहा है. 
प्रशासनिक स्‍तर पर जेलें राज्‍यों के अधीन आती हैं. आईपीएस अधिकारी अक्‍सर जेलों मे नियुक्‍त होना पसंद नहीं करते और खुद जेल मंत्री भी जेलों को लेकर अ-गंभीर बने रहते हैं. भारत में जेलों को सुधार गृह कहा जाने लगा है, लेकिन ऐसा कहने भर से काम पूरा नहीं होता. जेलें अपराधियों के लिए बड़े अपराध बनने का वर्कशॉप भी बनती रही हैं. विचाराधीन और सजायाफ्ता या फिर एक बार अपराध करके आये और बार-बार अपराध करने वाले बंदियों को अलग-अलग रखने का प्रावधान न होने से जेलें बाहर की दुनिया के लिए खतरे का कारक बनती हैं.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद खुली जेलों को लेकर सकारात्मक माहौल बनने लगा है, लेकिन इस रिपोर्ट को लागू करने के लिए नीयत भी बने, इसके लिए कोई नियम नहीं बनाया जा सकता. जेलें एक टापू की तरह संचालित होती हैं और सन्‍नाटे में पलती हैं. जेल से बाहर आने पर अपराधी फिर से अपराध की दुनिया में न लौटे, इसे सुनिश्‍चत करने के लिए उन संस्‍थाओं को संकल्‍प लेना होगा जिन पर य‍ह जिम्‍मेदारी है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एक रास्‍ते को खोला है, लेकिन इस रास्‍ते में चट्टानों की कोई कमी नहीं. जेलों को खोलने से पहले समाज को अपने मानस को खोलना होगा.

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  1. In one of the articles by Vartika Mam she had mentioned the story of a group of bandits who were put in an open jail. There may be many hurdles and concerns the authorities have to think of while establishing more open jails in India. But considering the condition of many of the prisons in our country, open jails are a necessity. Prisons are places that are meant for the reformation of the prisoners, but until we provide them with the conditions that are required for them to change, prison reformation will not be possible. #tinkatinka #prisonreforms #humanrights

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