जेलों ने आजादी के संघर्ष के उतार-चढाव बखूबी देखे। आज बात कुछ उन नामों की जिनके लेखन का बड़ा हिस्सा जेल में ही मुकम्मल हुआ और जिन्होंने भारतीय राजनीति को एक नई दिशा दी।
देश की आजादी के लिए शहादत देने वाले भगतसिह ने जेल में चार पुस्तकें लिखी थीं। यह चारों ही पाण्डुलिपियाँ आज नष्ट हो चुकी हैं। कहा जाता है कि इन सभी को उनके ही एक दोस्त ने अंग्रेजों के डर से जला डाला था। आज उनके बारे में न तो कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध है और न ही किसी ने भारतीय इतिहास के इस अँधेरे पक्ष पर शोध करने की ज़रूरत समझी है। लेकिन उनके लिखे का जो भी हिस्सा मिलावह आजादी के संघर्ष और जेल की गाथा कहता है। जेल में भगत सिंह करीब 2 साल रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रान्तिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। इस दौरान लिखे गये उनके लेखसंपादकों के नाम लिखी गई चिट्ठियां और सगे सम्बन्धियों को लिखे गये पत्र उनके विचारों की तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने जेल में अंग्रेज़ी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था –मैं नास्तिक क्यों हूँ?
महात्मा गांधी ने अपने जेल प्रवास के दौरान खूब चिंतन-मनन किया। सत्य के साथ गांधीजी के प्रयोग ‘मॉय एक्सपेरिमेंट विद् ट्रुथ’ जेल यात्राओं के उनके बहुत-से अनुभवों से निकलकर सामने आए थे। इसी तरह से भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को ब्रिटिशराज के दौरान 1942-46 में जेल भेज दिया गया था। इसी दौरान उन्होंने ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ को लिख दुनिया को एक अनूठी किताब भेंट की थी। यह किताब आज भी भारत की विकास यात्रा पर एक महत्वपूर्ण शोध ग्रंथ के रूप में देखी जाती है।
जयप्रकाश नारायण की 1977 में प्रकाशित हुई मेरी जेल डायरी’ मूलत चंडीगढ़ जेल से लिखी गई और इमरजेंसी की गाथा कहते हुए नजरबंदी और बाकी कुछ जेलों में रहे राजनीतिक कैदियों की मनोदशा को बयान करती है। यह किताब उस समय के बेहद विवादास्पद राजनीतिक माहौल की व्याख्या करती हुई आगे बढ़ती है। उस समय अकेले ट्रिब्यून समाचार पत्र के जरिए जेपी देश के घटनाक्रम को जान पा रहे थे। यह डायरी उस समय के भारतीय मानस की सटीक तस्वीर प्रस्तुत करती है। इस किताब की प्रस्तावना में श्री लक्ष्मीनारायण लाल ने लिखा है कि इस किताब के पन्ने लोकमानस के ऐसे दर्पण हैं जिनमें कोई भी अपने समय की छवि देख सकता है। किताब में जेपी की वह विनती खास तौर से उद्वेलित करती है जिसमें वे सत्ता से निवेदन करते हैं कि नजरबंदी के दौरान उन्हें कम से कम किसी एक व्यक्ति से मिलने और बात करने की अनुमति दी जाए। नजरबंदी के एकाकीपन का किसी बंदी की मनोदशा पर कितना गंभीर असर पड़ सकता हैयह भी इस किताब में झलकता है। 
अंग्रेजों द्वारा कागज-कलम मुहैया न किए जाने पर जेल की दीवारों पर कोयले से लिखनेवाले क्रांतिकारी शासक और शायर बहादुर शाह जफर भी इस कड़ी में याद किए जा सकते हैं। दीवार पर लिखी गई वह प्रसिद्ध गजल आज भी भारतीय मानसपटल पर अंकित है – ‘दो गज जमीं भी न मिली कूए-यार में…।’
जेलों ने इस बात को बखूबी स्थापित किया है कि मन में अगर शक्ति और इच्छा हो तो जगह मायने नहीं रखती। अकेलेपन और उदासी को सृजन में तब्दील कर कई बंदियों और स्वतंत्रता सेनानियों ने जेलों के बने-बनाए परिचय को तोड़ कर एक नई छवि रची है।

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2 Responses

  1. If we look into the history of literature, we can see that prisons have been a platform in which many great works have been written. In the history of Indian independence, there are many people like Bahadur Shah Zafar who were put in prison and during their time in prisons, they wrote to their countrymen about their life, their thoughts and ideas. There are some works, like that of Bhagat Singh which were lost and now no proof of them is left. They made the best use of their loneliness and their stories inspire us to never break down mentally during hard times. #tinkatinka #prisonreforms #humanrights

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