लोकसभा टीवी पर पिछले 3 साल में बाबू जगजीवन राम पर 6 फिल्में बनीं। एक अंग्रेजी अखबार ने हाल ही में इस पर रिपोर्ट छापी तो कई माथों पर शिकन के निशान दिखाई दिए। एक बार फिर यह बहस भी उठी कि पब्लिक सर्विस ब्राडकास्टर की उपयोगिता असल में होती क्या है और भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश में वह क्या महज राजनीतिक पूर्ति का एक सफेद हाथी है है या फिर उस पर शान के साथ घोड़े की सवारी भी की जा सकती है।। क्या इन फिल्मों का निर्माण कुछ संकेतों की तरफ ले जाता है या फिर यह महज एक इत्तफाक भर ही था।

लोकसभा टीवी को लाने का श्रेय लोकसभा के तत्कालीन अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी और सूचना और प्रसारण मंत्रालय के पूर्व सचिव और रिटार्यड आईएएस अधिकारी भास्कर घोष को जाता है। यह दोनों न होते तो यह शायद यह चैनल कभी शुरू भी न हो पाता। चटर्जी चाहते थे कि पार्लियामेंट लाइब्रेरी बिल्डिंग से एक ऐसे चैनल की शुरूआत हो जो सबसे अलग हो। जो विजिटर्स गैलेरी को सीधे दर्शकों तक पहुंचा सके। इससे पहले लोकसभा की कार्यवाही का सीधा प्रसारण दूरदर्शन करता था और इसलिए वह साल के 90 दिनों तक ही सीमित था। लोकसभा के चलने पर ही फुटेज दिखाई देती और बाकी समय रंगीन पट्टियां। नतीजा यह होता कि आम दर्शक को भी लगता कि शायद लोकसभा सांसद साल में सिर्फ 90 दिन ही कथित तौर पर काम करते हैं। तिस पर कहानी यह कि संसद में उनका जो आचरण अकसर दिखाई देता, वह उनके सम्मानित होने के वजूद पर ही सवाल लगाता। खैर, 2006 में यह चैनल शुरू हुआ और दुनिया का पहला ऐसा चैनल बना जो संसद का अपना चैनल बना, संसद भवन से ही संचालित और प्रसारित होता हुआ।

भास्कर घोष ने एक टीम का गठन किया। इसमें सुधीर टंडन और वैंकटेश्वर लू के अलावा मैं भी थी। बाद में के जे एस चीमा, भूपिंदर कैंथोला, विनोद कौल, विकास शर्मा, बी बी नागपाल, ज्ञानेंद्र पांडेय, शकील हसन शम्सी वगैरह को भी जोड़ा गया। एक बड़ा समय इस बात पर लगाया गया कि पूरे साल इस चैनल को कैसे चलाया जाए, वह भी न्यूज के बिना। योग्य एंकरों का चयन, प्रोडक्शन की टीम और पूरी तरह से सीलबंद दिखती बिल्डिंग में बुनियादी जरूरतों को जुटाना – सब एक युद्ध लड़ने जैसा ही था पर था रोचक।

चैनल काफी हद तक सफल रहा। बेरंग और नीरस दिखने के बावजूद लोगों का चहेता बना क्योंकि जो उसमें था, वह दूसरे चैनलों में होना तकरीबन नामुमकिन ही था। विजिलेंट पत्रकारिता के इस दौर में लोक सभा टीवी एक सुनहरा अध्याय बन कर सामने आया। चैनल देश का पहला ऐसा चैनल बना जो लोकसभा सचिवालय चला रहा है, जो संसद के भवन के अंदर ही है और जो लोकसभा का पूरा आंखोंदेखा हाल दिखाने में सक्षम है, वह भी सरकारी खर्चे पर। चैनल शुरू हुआ तो सबसे पहले डर यही उपजा कि जनता सांसदों को जब झगड़ते-गलियाते लाइव देखेगी तो क्या सोचेगी। लेकिन इन डरों की परवाह नहीं की गई और चैनल पैदा हो गया। चैनल संसद के सत्र के सिर्फ 90 दिनों तक ही सीमित नहीं रहा, पूरे 365 दिनों का चौबीसी चैनल बना और उसने भी सांसदों के लाइव ड्रामे को दिखा कर जनता को जगरूक किया।

मीरा कुमार के अध्यक्ष बनने के बाद भी लोक सभा टीवी नए प्रयोग करता रहा है और चैनल के प्रति उनकी आस्था और स्नेह भी साफ तौर पर झलका है।

लेकिन इसके बावजूद यह चैनल भी दूरदर्शन की तरह विवादों और सवालों से अछूता नहीं रह सका है। शायद लोकतंत्र की मजबूती के लिए यह जरूरी भी है पर अगर इनसे सबक न लिए जाएं तो फिर यह घातक स्थिति को आमंत्रण दे सकते हैं। किसी भी पब्लिक सर्विस ब्राडकास्टर से कुछ उम्मीदें होती हैं और वे पूरी तरह से जायज होती हैं। जनता के पैसों पर चलने वाली कोई भी मशीनरी किसी द्वीप में खुद को रख ही नहीं सकती।

इसलिए इस बार जो सवाल खड़े हुए हैं और जो संकेत दिए गए हैं, उन पर गहन विचार होना चाहिए। पब्लिक सर्विस ब्राडकास्टर को जन सेवकों, रोजनेताओं, प्रेरणादायक शख्सियतों पर काम करना ही चाहिए – हर हाल में पर साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वे जनता को सुख और तृप्ति का ही भाव दें।

वैसे एक समस्या यह भी दिखती है कि तमाम तरह के सरकारी-अर्ध सरकारी ध्रुवों में सही सलाह देने वाले होते भी नहीं। शीर्ष पर बैठे लोगों के आस-पास मीठी लोरियां सुनाने वाले इस कदर बढ़ जाते हैं कि राजा की नंगई को भी फैशन कह दिया जाता है ताकि राजा मुस्कुराए। राजा अक्सर यह बात भूल जाते हैं कि सत्ता की रेलमपेल जब भी होती है, लोरी वाचक सबसे पहले नदारद हो जाते हैं और यह भी सत्ता के लिए जरूरी होता है कि वह जमीन पर कान लगा कर अंदर होती खुसफुसाहट और आक्रोश के स्वर को गौर से सुने जरूर।।

(इस लेख को यहां भी देख सकते हैं)

http://www.mediakhabar.com/media-article/guest-column/4101-loksabha-tv.html http://samachar4media.com/content/%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%B8%E0%A4%AD%E0%A4%BE-%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A5%80-%E2%80%93-%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6

( 11 जुलाई, 2012)

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