दिल्ली से गोवा की फ्लाइट के चलने में अभी कुछ समय बाकी है। तभी एक नजारा मिलता है। पहले दो  कर्मचारीनुमा लोग दो अलग-अलग सूट थामे हुए सावधानी से चलते हुए, फिर करीब 30 लोगों का एक परिवार जैसा एक काफिला और उनके एक कोने में ठसक के साथ चलते हुए दो पंडित। पंडितों को देखते ही मामला समझ में आ जाता है। यह लड़के की बारात है।

 

फ्लाइट चलती है। बाराती रास्ते भर कुछ नहीं खाते(क्योंकि कुछ फ्लाइटों में खाने का पैसे खर्च होते हैं) हां, खुसफुसाहट जरूर कानों में पड़ती है कि वहां का इतजाम कैसा शानदार होगा।

 

गोवा आते ही कारवां खुशी से बाहर आता है। बेहद सावधानी से दूल्हे के कपड़े उठाए उन दोनों कर्मचारियों से मैं पूछती हूं क्यों भइया, इतने ध्यान से क्या उठाए हुए है। वे शर्मा कर कहते हैं (गोया यह शादी उन्हीं की हो) कि ये भइया जी के कपड़े हैं, उनकी शादी है। मेरा मन अभी भरा नहीं है। अबकी मैं पूछ बैठती हूं, भइया कपड़े बहुत महंगे हैं क्या। उनमें से एक शर्मा कर फिर से कहता है हां, बहुत महंगे हैं।

 

खैर,एयरपोर्ट पर बारातियों का भव्य स्वागत होता है। बताया जाता है कि उनके लिए गोवा के एक शानदार होटल में चार दिन और तीन रात ठहरने का इंतजाम किया गया है। जाहिर है खर्चा लड़की वालों का ही है। एक बाराती कहता है कि इंतजाम तो खास होना ही है जी। इतना तो बनता ही है। बाराती एक विशालकाय बस में जाते हैं। प्रस्तावित दूलहा अपने दोस्ते के साथ एक बड़ी कार में। एक-एक पल की वीडियो रिकार्डिंग होती है। लड़के के बैठने, हाथ हिलाने, हंसने सभी की।

 

 

यह कारपोरेट शादी है। यहां सब कुछ पैकेज में मिलता है। हवाई यात्रा, ठहरना, खाना-पीना, घूमना, लौटते में सोने के सिक्के पाना यह सब पैकेज का हिस्सा है। मैनें तो शादी से पहले के आयोजन की एक झलक भर ही देखी, शादी में जाने क्या हुआ होगा। लाजपतनगर के एक दुकानदार की बेटे की शादी के लिए जब यह पैकेज देखा तो सोचना पड़ा कि आजकल नेताओं, सरकारी अफसरों, बड़े व्यापारियों के बेटों के लिए जाने कैसे पैकेज होते होंगा। क्या हम वाकई तरक्की कर रहे हैं? वैसे सीबीआई है कहां और कहां है इंकम टैक्स विभाग? क्या यह विभाग उन्हीं लोगों को डराने के लिए हैं जिनके पास इंकम कम और डर ज्यादा है?

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8 Responses

  1. अरे जी… क्या बात कर दी आपने… CBI हो या हो tax deprt. सब अपना फायदा देखते हैं…
    मस्त पोस्ट…

  2. भाई वह , ये तो आपने नब्ज़ ही पकड़ ली है. कारपोरेट शादियाँ अब तो स्पोंसर भी होने लगी हैं. पर फिर भी लोग हैं कि गरीबी का रोना रोने मे लगे रहते हैं. वैसे वर्तिका जी हंस अगस्त २०१० मे छपी आपकी कविता मर्मस्पर्शी लगी! बधाई ………..

  3. इन्‍कम टेक्‍स वाले पहलं अपना सोचते हैं, जब उन्‍हें पूरा मिल जाता है तो वे काहे को चिन्‍ता करे। जब उन्‍हें नहीं मिलता तो बेचारे छोटे व्‍यापारी के हाथ डालते हैं। बढिया आलेख।

  4. वर्तिका जी नमस्‍कार। आपने विषय अच्‍छा उठाया है परंतु सरकार में इतना भ्रष्‍टाचार फैला है कि सब उसी में डूब उतरा रहे हैं, इनकी तरफ ध्‍यान देंगे तो भ्रष्‍टाचार को बढ़ावा देने के लिए ही। वैसे आप उनकी सबकी इनकी छोडि़ए। अगर आप गोवा में ही हैं तो संपर्क कीजिए मैं भी गोवा में ही हूं और इफी में हूं। 9420920422


    शनिवार को गोवा में ब्‍लॉगर मिलन और रविवार को रोहतक में इंटरनेशनल ब्‍लॉगर सम्‍मेलन

    सिनेमा का बाजार और बाजार में सिनेमा : गोवा से

    'ईस्‍ट इज ईस्‍ट' के बाद अब 'वेस्‍ट इज वेस्‍ट' : गोवा से

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