इस बार सपने
सीधे हथेली पर उतार दिए
फिर उन्हें तकिए पर रखा
खुशबू आने लगी
लगा उग आए सैंकड़ों रजनीगंधा
सपनों ने हौले से बालों का सहलाया
लगा मेरे साथ उत्सव मनाने चले हैं
आज की रात दावत भी सपनों की ही थी
रात की रानी, हरसिंगार, खुशियों के प्याले इतने छलके
सुबह का आना तो पता न चला
अगली रात की दस्तक बड़ी अखरी
10 Responses
बहूत खूब है ये सपनों की महफील… इन्हें यूं ही संवारते रहना…
बहूत खूब है ये सपनों की महफील… इन्हें यूं ही संवारते रहना…
wov!!!!!!!!!!!!!!!! vartika jee, bahut khoob likha hai
badhai, very good creation indeed
इस बार सपने
सीधे हथेली पर उतार दिए
फिर उन्हें तकिए पर रखा
खुशबू आने लगी
बहुत सुन्दर कविता है वर्तिका जी, एकदम सपनों की खुश्बू से रची-बसी.
bahoot sundar, kya kahne. shaandaar rachana ke liye badhai.
बहुत खूबसूरत एहसास है
वाह
बेहद खूबसूरत रचना है .
सपनों ने हौले से बालों का सहलाया
लगा मेरे साथ उत्सव मनाने चले हैं
वर्तिका जी , बहुत खूबसूरत और कोमल भावनाओं को आपने बड़ी सुन्दरता के साथ शब्दों में ढाला है। 1 अगस्त मेरा जन्मदिन था—अफ़सोस हुआ उस दिन इतनी सुन्दर कविता न पढ़ सकने का।
आपकी कवितायेँ हंस मे भी पढ़ी और यहाँ भी ….बहुत अच्छा लगा ।
वाह…सुंदर भावों से सजी सपनीली कविता.