बस
अब रंगों जैसा ही हो जाना है
घुल जाना है
पानी जैसे
बह जाना है
पहाड़ जैसे
टिक जाना है
शहर जैसे
चल पड़ना है
बर्तन जैसे
बन जाना है
रिश्ते जैसे
निभ जाना है
मर्द जैसा
बेवफा होना है
सब कुछ होना आसान ही है शायद
पर औरत होना
खुद अपने जैसा होना !!!!!
2 Responses
वर्तिका जी,आपकी इस कविता को कई बार पढ़ा–हर बार इसका एक नया अर्थ सामने आया—और इन पंक्तियों ने तो बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया—पर औरत होना खुद अपने जैसा होना !!!!! बेहतरीन कविता—
वर्तिका जी,
वन्दे!
'आखर कलश'पर आपकी अच्छी कविताएं पढ़ कर आपके ब्लाग पर आया हूं।यहां भ्रमण कर खूब और भरपूर आनंद आया।अच्छी कविताओं के अलावा भी बहुत कुछ पढ़ने मिला।आप तो बहुआयामी व्यक्तित्व की मालकिन हैँ।आपका रचना संसार भी बहुआयामी है!बधाई हो।
आपको उचित लगे तो मेरे ब्लाग पर भी पधारेँ,अच्छा लगेगा।
http//www.omkagad.blogspot.com