चुनाव से पहले गुहार लगी है
‘सही’ आदमी को ही वोट दो
वो अपराधी न हो, यह गौर करो ।
‘सही’ आदमी को ही वोट दो
वो अपराधी न हो, यह गौर करो ।
गुहार लगी है
कि यह है दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र
तंत्र न गड़बड़ाए
इसलिए बिलों से बाहर निकलो
भाई, इस बार जरूर वोट दो।
गाने लिखने-बजाने वाले बरसाती मेंढक भी उचक कर
आ गए हैं बाहर
वो गढ़ रहे हैं गीत
या फिर चोरी के काम के लिए
कर रहे हैं गानों की चोरी
पक्ष के लिए, विपक्ष के लिए, बीच वालों के लिए भी।
सज रही है विज्ञापनों की मंडी
पोस्टरों के बाजार में गोरपेन की क्रीम-सा निखार
लगता है कल रात ही पैदा हो गया
कमाई की फसल काटने लगे हैं
तिकड़मी पत्रकार भी।
लेकिन जनता बेचारी क्या करे
इतने जोकरों के बीच
कैसे तय करे
कौनसा जोकर उसके लिए ठीक रहेगा
कौन है ‘सही’।
कह देना आसान है
देना वोट ‘सही’ आदमी को
लेकिन असल सवाल तो
‘सही’ और ‘आदमी’ के बीच ही टंगा है
क्योंकि आदमखोरों की इस बस्ती में
न ‘सही’ दिखते हैं
न ‘आदमी’फिर किसे दिया जाए वोट?
7 Responses
कह देना आसान है
देना वोट ‘सही’ आदमी को
लेकिन असल सवाल तो
‘सही’ और ‘आदमी’ के बीच ही टंगा है
क्योंकि आदमखोरों की इस बस्ती में
न ‘सही’ दिखते हैं
न ‘आदमी’फिर किसे दिया जाए वोट?
वाह जी वाह बिलकुल सटीक लिखा है आपने हर कोई तो मुखौटा लगाए हुए है अपराधी ही राजनीति में सक्रिय होते जा रहे हैं तो ऐसे में अगर वोट देते हैं तो भी मरे ना दें तो भी मरें आखिर करें तो क्या करें
बहुत सही है … किसे दिया जाए वोट ?
बहुत सटीक व बढिया रचना है।बधाई स्वीकारें।
आज कल के नेताओ को देख कर तो खींझ होती है।आप ने सही लिखा है असल मे हम जोकरो मे से ही चुनाव करते है।
वाकई आपने सही परेशानी बयान की है
पिछले महीने भर से हम परेशां हैं कि लखनऊ में अपना वोट किसे देंगे .
हम खुद वोट देने के पक्षधर हैं पर किसे दें? कोई तो खरा उतरने लायक हो सांसद होने के लिए
विवेक का इस्तेमाल करना चाहते हैं जाति धर्म से ऊपर उठकर वोट देना चाहते हैं मुद्दों की तलाश कर रहे हैं योग्यता खोज रहे हैं और जब इतना सोच लेते हैं तो कोई वोट पाने लायक बचता ही नहीं है
पर वोट तो देना ही है
आपने बिलकुल सही बात कही
राजनीतिक बयार में रचना की फुहार बेहद सटीक है वर्तिका जी । अब किया क्या जाये ?
वर्तिका नन्दाजी!
आपने कविता के माध्यम से जो सन्देश दिया वो सही है।चुनाव के दिन अपने मत का सही उम्मीदवार के पक्ष मे प्रयोग करे।
हे प्रभु