मुमकिन है बहुत कुछ
आसमान से चिपके तारे अपने गिरेबां में सजा लेना
शब्दों की तिजोरी को लबालब भर लेना
देखो तो इंद्रधनुष में ही इतने रंग आज भर आए
और तुम लगे सोचने
ये इंद्रधनुष को आज क्या हो गया!
आसमान से चिपके तारे अपने गिरेबां में सजा लेना
शब्दों की तिजोरी को लबालब भर लेना
देखो तो इंद्रधनुष में ही इतने रंग आज भर आए
और तुम लगे सोचने
ये इंद्रधनुष को आज क्या हो गया!
सुर मिले इतने कि पूछा खुद से
ये नए सुरों की बारात यकायक कहां से फुदक आई?
भीनी धूप से भर आई रजाई
मन की रूई में खिल गए झम-झम फूल
प्रियतम,
यह सब संभव है, विज्ञान से नहीं,
प्रेम में आंखें खुली हों या मुंदी
जो प्रेम करता है
उसके लिए कुछ सपना नहीं
बस, जो सोच लिया, वही अपना है।
8 Responses
वर्तिका नन्दा जी
“जो प्रेम करता है
उसके लिए कुछ सपना नहीं
बस, जो सोच लिया, वही अपना है।”
बहुत ही सुन्दर॥ आपकी यह चार लाईनो ने मेरा मन मोह लिया। बधाई अच्छा लिखने के लिये।
prem par apne kuchh likha, thanks
gangesh sri
Bahut hi sundar bhaav aur mohak abhivyakti.
Sundar rachna hetu badhai.
जो प्रेम करता है
उसके लिए कुछ सपना नहीं
बस, जो सोच लिया, वही अपना है।
–बहुत गहरी बात लिए एक सुन्दर रचना, बधाई.
प्रेम में आंखें खुली हों या मुंदी
जो प्रेम करता है
उसके लिए कुछ सपना नहीं
बस, जो सोच लिया, वही अपना है।
वाह बहुत उम्दा।
ये नए सुरों की बारात यकायक कहां से फुदक आई?
सुन्दर कविता की जान लगीं हमें ये पंक्तियाँ। बहुत ख़ूब।
सार्थक शब्दों के प्रयोग से कविता के रंग निखरते रहते हैं
—मेरा पृष्ठ
तख़लीक़-ए-नज़र
jo prem karta hai uske liye —–bahut sunder bhaav hain