Author : Vartika Nanda
Publisher: Vani Prakashan
ISBN: 978-93-5072-976-2
Year: 2015
Pages: 100
Price: Rs. 225/-

 

Description

Vartika Nanda’s book Raniyan Sab Janti Hain is a collection of poems on victims and survivors of various crimes. This book deals with the culture of silence and sets mood for gender discourse. It was listed amongst the TOP 5 books in the year 2015 by Femina.

  • 2015: This book was released during the International Book Fair at Lal Chowk Theatre, Pragati Maidan on 21st February, 2015. The panelists of the programme included Tejender Luthra (IPS), Laxmi Shankar Vajpayee, Shobha Vijender, Anuradha Prasad, Rashmi Singh (IAS) and Richa Anirudh.
  • 2015: Raniyan Sab Janti Hain also resulted in the production of a thematic representation of violence against women ‘Sshhh…..’. A unique initiative which aimed to challenge the perception that domestic violence is limited to the lower strata of the society and raise the question whether the society and the system truly support women in breaking the silence, through a dramatic dialogue of dance, music and theatre with soaring live vocals and percussion. This was done in coordination with Arunima Kumar, a noted Kuchipudi dancer from UK. (This programme was organized for a special audience at CSOI, Chanakya Puri, New Delhi.)

Ref: http://www.thehindu.com/features/friday-review/dance/breaking-the-silence-of-the-lambs/article6555544.ece</ref>

  • 2015Coffee Table Book published by CSOI had a special mention on Raniyan Sab Janti Hain: Feb 28
  • 2015: Her book Raniyan Sab Janti Hain by Vani Prakashan, was listed amongst the TOP 5 books in the year 2015 by Femina: Sept 2
  • 2014:  Organised a special talk on Coverage of Domestic Violence by Media in the backdrop of the book – Raniyan Sab Janti Hain at CSOI, Delhi: October 26, 2014

Clip on the images of books released by Vani Prakashan: https://www.youtube.com/watch?v=d7tSURwI45w

Media Coverage

  • 2015, September: Femina: Year -7, Issue 10: Varsh 2014-2015 kee Behetareen Kitabein

  • 2015, February 22: Jansatta: Two poems from Raniyan Sab Janti Hain published in the Sunday edition.
  • 2012, September: Naya Gyanoday: Poem titled Raniyan Sab Janti Hain published
Play Video

2014: 26 October: Raniyan Sab Janti Hain resulted in the production of a thematic representation of violence against women ‘Sshhh…’. The initiative aimed to challenge the perception that domestic violence is limited to the lower strata of the society and raise the question whether the society and the system truly support women in breaking the silence, through a dramatic dialogue of dance, music and theatre with soaring live vocals and percussion. This was done in coordination with Arunima Kumar, noted Kuchipudi dancer from the UK. This programme was organized for a special audience at CSOI, Chanakya Puri, New Delhi.

Raniyan Sab Jaanti Hain: Podcast Series

Promo: 24 June, 2024

वो रानी थी। पर कुछ ही दिनों में राजा को महल में एक नई रानी की दरकार हुई। रानी खुद ही महल से बाहर चली जाती तो आसानी होती पर ऐसा हुआ नहीं। तब राजा ने शतरंज की बिसात बिछाई। सिपहसालार जमा किए। राजा महल में लाना चाहता था – नई रानी। इसलिए जो रानी मौजूद थी, उस पर लगाए जाने लगे आरोप – महल पर कब्जे, बदमिजाजी और संस्कार विहीन होने के! रानी तब भी बहुत दिनों तक डटी रही। कोई जान न पाया राजा महल में किन सुरंगों को खुदवा रहा था। रानी चुप रही। बड़ी दीवारों ने सोख लीं सिसकियां। दीवारों को आदत थी। उधर पिछले दरवाजे से नई रानी आ भी गई।

बाहर की दुनिया जान न पाई – नई रानी के लिए पुरानी रानी को दीवार में चिनवाना कब हुआ और कैसे हुआ।

दीवार में चिनवा दी गई उसी रानी की है यह – कहानी। जमाने गुजर जाएंगें पर रानी की इस चीख को आप भूल न पाएंगें क्योंकि सच को जानती हैं – रानियां। सिर्फ रानियां।

Raniyan Sab Janti Hain: Book Review

पुस्तक- रानियाँ सब जानती हैं
लेखिका– डॉ.वर्तिका नन्दा
प्रकाशक -वाणी प्रकाशन
प्रथम संस्करण -2015
मूल्य – 125 रुपये

डॉ वर्तिका नंदा की लिखी किताब ‘रनियाँ सब जानती है’ उस अंधेरे की ओर लेज़र लाइट की सी रोशनी छोड़ती है जहां किसी का पहुंचना तो दूर, किसी की सोच तक नहीं जाती। वह कोना है- किसी भी औरत का मन।

किताब के कवर पेज से लेकर आखिरी कविता तक यह किताब स्त्री मन के अथाह सागर का मंथन करती है। हर कविता पढ़ने के बाद आंखें स्वतः ही बंद हो जाती हैं और अंदर ही अंदर हर महिला उस कविता के केंद्र में खुद को पाती है। किसी भी कविता की पात्र कोई विशेष महिला नहीं है बल्कि हर स्त्री मन का मौन अंतस है। मर्म यह है कि महल में रहने वाली रानी हो, आम जीवन जीने वाली कोई भी महिला या फिर जेल में बंद कोई औरत, हर स्त्री किसी न किसी अमरबेल की जकड़न में है।

किताब के शुरुआती शब्द औरत के इर्दगिर्द अभेद चक्रव्यूह की बानगी हैं…

याचक बनाते महिला आयोग,
उखड़ी सांसों की पुलिस की महिला अपराध शाखाओं,
ढुलमुल कचहरियों
और
बार-बार अपराध कर
गोल चबूतरे से थपकियां पाते
तमाम अपराधियों के लिए
जिन्हें जानकर भी चुप रहीं
रानियां
यह कविताएं उंगली नहीं उठाती, कटाक्ष नहीं करती, उपदेश नहीं देतीं, औरत की बेचारगी और मायूसी को नहीं कहतीं बल्कि बड़े ही सहज परंतु सटीक तरीके से स्त्री मन के उद्गार प्रकट करती हैं। इन कविताओं में प्रार्थनाएं हैं, सादर,उत्सव , पानी , बादल,परी,सुर हैं। कुल मिलाकर लेखिका का मकसद है
“सिसकियों को लाल धागे में बांधकर खिलखिलाहट में बदल देना है ताकि दुख की सुरंग सुख के खलिहान में खुले”
(रानियाँ सब जानती हैं पृष्ठ सं-10)

रानियाँ सब जानती हैं स्त्री अंतर्मन का दर्पण है ,इसमें हर महिला को अपना अक्स दिखता है। हर औरत अपने अंदर के पूरे सच को कभी बाहर नहीं ला पाती, मौके पर सच बोल नहीं पाती,और तो और सच सामने हो तो भी कह नहीं पाती ।

लेखिका ने प्रतीकात्मक तौर पर महलों की बात कही है जहां राजा की पत्नी होने के नाते औरत रानी के रूप में विराजती है। वो रियासत की रानी है ,उसका हुक्म चलता है , लेकिन राजा के हरम का अस्तित्व इस बात को झूठा साबित नहीं करता की रानी के अशांत मन में कुलबुलाहट है। हरम में मौजूद सैकड़ों औरतों के साथ अपने पति का बंटवारा रियासत की रानी को किस श्रेणी में खड़ा कर देता होगा।

वो रानी थी।पर कुछ ही दिनों में राजा को महल में एक नई रानी की दरकार हुई।रानी खुद ही महल से बाहर चली जाती तो आसानी होती पर ऐसा हुआ नहीं।तब राजा ने शतरंज की बिसात बिछाई।सिपहसालार जमा किये।राजा महल में लाना चाहता था —नयी रानी।इसलिए जो रानी मौजूद थी ,उस पर लगाये जाने लगे आरोप– महल पर कब्ज़े, बदमिज़ाजी और संस्कार विहीन होने के………. रानी चुप रही। बड़ी दीवारों ने सोख लीं सिसकियां। दीवारों को आदत थी।उधर पिछले दरवाजे से नयी रानी आ भी गयी।
(रानियाँ सब जानती हैं , वर्तिका नन्दा का संपादकीय)

अतीत में झांके तो रियासतों और राजवाड़ों का इतिहास ऐसी कथाओं के साथ पटा पड़ा है।
हरम के अंदर हरम
हरम के अंदर हरम
तालों में
सीखचों में
पहरे में
हवा तक बाहर ठहरती है
और सुख भी
रानियाँ सब जानती हैं
पर मुस्कुराती हैं
(रानियाँ सब जानती हैं पृष्ठ सं-33)

इतिहास में दर्ज़ तथ्यों के अनुसार
महारानी से शुरू कहानी, रानी,पटरानी से गुज़रते हरम तक जा पहुंचती है जहाँ क़ैद सैकड़ों औरतों के पास तमाम सच हैं लेकिन ज़ुबान पर चुप्पी चस्पा है।

चुप्पी
इतिहास की इज़्ज़त
वर्तमान के षडयंत्रो के चक्रव्यूह
और भविष्य की संभावित उतरनों के बलात्कार को
रोके रखती है

देश और घर
इसी चुप्पी के भरोसे
भरते हैं
सांस।।।।।
(रानियाँ सब जानती हैं पृष्ठ सं-25)

ऐतिहासिक गाथाएं साक्षी हैं कि औरत का जीवन किसी भी युग में सरल नहीं रहा। सीता,कौशल्या , अहिल्या, द्रौपदी, उर्मिला, यशोधरा, देवकी,रुक्मणि,ऐसी तमाम औरतें इतिहास में दर्ज़ हैं जिनकी चुप्पी कई रहस्यों को रसातल में दबा गयी। औरत को दूसरे दर्ज़े पर रखा जाना पुरुष प्रधान समाज की सबसे बड़ी त्रासदी है ।


संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार हर तीसरी महिला किसी न किसी हिंसा की शिकार हुई है ।
(रानियाँ सब जानती हैं , अपमान-अपराध-प्रार्थना-चुप्पी…)

हिंसा के खरोंचें तन पर कम और मन पर ज़्यादा लगती हैं। तन के घाव तो भर जाते हैं पर मन के घाव नासूर की तरह रिसते हैं। इनकी कसक जीते जी तो नहीं ही जाती। ये टीस न सही जाती हैं और न कही ।

खुद मरी या मारी गई, तेजाबी हमले की शिकार हुई ,बलात्कार, झूठ, फरेब, छल, कपट की शिकार हुई महिला की चीखों का मौन स्वर है ‘रानियाँ सब जानती हैं। इस किताब में लेखिका ने हर महिला को रानी का दर्ज़ा दिया है जो वास्तव सही है। खुद प्रकृति ने जिसको सृष्टिसृजक होने के सच से नवाज़ा है वो रानी ही है। पर त्रासदी है कि हर सच की चाबी को राजा ने अपने अधिकार क्षेत्र में रख लिया है ।

रानियां सब जानती हैं किताब की लेखिका डॉ वर्तिका नंदा जेल सुधारक और मीडिया शिक्षिका हैं। जेलों में बंद महिलाओं के अधरों पर चिपकी चुप्पी को समझना और उसे तोड़ पाना लोहे के चने चबाने सा है। इस दुरूह कार्य को वो जेल पर लिखी गयी अपनी किताब “तिनका तिनका तिहाड़” में अंजाम दे चुकी हैं। जेलों में सज़ा काट रही महिलाओं की मन:स्थिति का अध्ययन बड़े ही बारीकी से करने के बाद का निष्कर्ष हर आम और ख़ास औरत के साथ जा के जुड़ जाता है।

रानियाँ सब जानती किताब उद्वेलित नहीं करती बल्कि इसकी कविताएं सोच को मुखर करती हैं। ये कविताएं अपराध अपमान प्रार्थना और चुप्पी इन चार संवेगों के इर्द-गिर्द हैं। अपराध एक तीव्र संवेग है अचानक जो भयवाह स्थिति उत्पन्न करता है। अपराधी पर समाज और कानून के तीक्ष्ण कटाक्ष होते हैं लेकिन अपराधी के अंतस में बने भावात्मक नासूर पर कोई बात नहीं होती, उस किसी की नज़र नहीं ही जाती । ऐसे तमाम वाक्यात से लेखिका ने स्त्री मन को खोलने का सफल प्रयास किया है, साथ ही “थी, हूँ, और हमेशा रहूंगी” ये मंत्र भी गढ़ कर हर स्त्री के लिए सहेज दिया है ।
“हाँ, मैं थी. हूँ… और हमेशा रहूंगी”

यह मंत्र दम्भ नहीं बल्कि विचारात्मक दृढ़ता है, यह मंत्र तपता सूरज नहीं बल्कि गहन अंधकार में जलती मशाल है, यह मंत्र अपने अस्तित्व की लड़ाई नहीं बल्कि खुद के पुनर्स्थापन की कला है ।

ज़ुबा बंद है
पलकें भीगी
सच मुट्ठी में
पढ़ा आसमान ने
मैं अपने पंख खुद बनूँगी
(रानियाँ सब जानती हैं पुस्तक में पहली कविता )

इस किताब में आम जीवन से जुड़ी कई वस्तुएं और भाव हैं। शब्द , तारे चूल्हा, सब्ज़ी,पानी, सुर कठपुतली, छल्ले, हसरतें ,मरुस्थल, रियासत, उत्सव विराम, बात इतनी थी कि…, लेखिका ने आसपास के तमाम दृश्य ,परिस्थितियाँ और स्थितियां अपनी कविताओं में उतारी हैं। खास बात यह कि इन कविताओं में हर उम्र और हर वर्ग की महिलाओं के अक्स दिखते हैं ।
कविता कोई सवाल नहीं करतीं बल्कि ज़हन में कई सवाल छोड़ जाती है कि क्या स्त्री केवल उपभोग की ही वस्तु है? महिला सशक्तिकरण का दिवस मना लेने से ही क्या महिला सशक्त हो जाएगी? क्या औरत की चुप्पी को सकारात्मक ज़ुबान नसीब हो पाएगी?

रानियाँ सब जानती हैं पुस्तक कोरी भावनाएं नहीं बल्कि यथार्थ का दग्ध धरातल है जहां अपमान अपराध प्रार्थना और चुप्पी के रहस्य से पर्दा उठता है और हर रानी (औरत) के मन की देहरी पर मन्नतों के धागे से बंधी सच की पोटलियां खुलती हैं।

इस पुस्तक की अंतिम कविता है

बात सिर्फ इतनी थी

रानियां हमेशा रहेंगी
राजा भी चौबारे भी
हरम भी और
नई रानी को लाने के लिए चालबाजियां और साजिश में भी
सरपंच भी राजा का ही होगा
शतरंज की बिसात भी
लश्कर भी
पंचायत भी
और कायदे की किताब भी
सरहदें भी राजा ही तय करेगा
और गवाहियां भी
पर अब सब बदल रहा है, बदलना ही होगा ऐलान कि

राजा के तहखाने में जहां छुपाई गई है चाबी वह किसी दिन रानी के हाथ आ जाए
रानी तो माफ कर ही देगी
राजा के सारे गुनाह
पर दुनिया भी जानेगी
एक राजा और एक चाबी__कैसी थी साजिशें की कहानी
वह सुबह कभी तो आएगी
ज़रूर आएगी
(रानियाँ सब जानती हैं,पृष्ठ संख्या99 )

“थी, हूँ, और हमेशा रहूंगी मंत्र का अभिमंत्रित यंत्र है “रानियाँ सब जानती हैं”

लेखिका सच बयां करने में पूरी तरह से सफल है अब बारी पाठकों की ….

सुखनन्दन बिन्द्रा
प्रसारणकर्मी (आकाशवाणी)
पॉडकास्टर
संपर्क-sukhnandanb@gmail.com

References

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Citatations and References: 

  1. Raniyan Sab Janti Hain। Podcast। Poetry। Literature ।Year 2015 ।Vartika Nanda।: March 8th 2024 https://youtu.be/kMur76e5KPE?si=1DPDjdcejCOeJUmU
  2. Raniyan Sab Janti Hain: Rituraj Parampara Award: August 12th 2016 https://youtu.be/I474L81V7SU?si=OsyQkAlEl6oWOKpi 
  3. Book Release: Raniyan Sab Janti Hain: Vartika Nanda:World Book Fair: 2015: February 18th 2015 https://youtu.be/zl8V6qKulw0?si=ZQGkBveyJIk3Eumm 
  4. Raniyaan Sab Janti Hain। Year 2015। Vartika Nanda: August 4th 2015 https://youtu.be/mvHUnEk7gDE?si=xMIXrKCjePkXnvRa 
  5. 92.7: Release: Raniyan Sab Janti Hain: Vartika Nanda: Dilli Meri Jaan: March 28th 2015 https://youtu.be/vlCzVQ4f3Dc?si=R4WT7CrZp7td4VfM
  6. Journey: Raniyan Sab Janti Hain: March 19th, 2015: https://youtu.be/d7tSURwI45w?si=thCX5MkedW6P0Hvq 
  7. Websites: www.vartikananda.com/ www.tinkatinka.org
  8. Blog:  www.vartikananda.blogspot.com: Dr. Vartika Nanda: Media Educator & Prison Reformer: Search results for raniyan
  9. Google Link: VARTIKA NANDA – Google Search

 

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