थके पांवों में भी होती है ताकतदेवदारों में चलते हुएये पांवझाड़ियों के बीच में से राह […]
सफर ठगे जाने के बाद शुरू होता हैअपने सेपराये सेकिसी पराये अपने से बीचों बीच रौशनी […]
सड़क किनारे खड़ी औरतकभी अकेले नहीं होतीउसका साया होती है मजबूरीआंचल के दुखमन में छिपे बहुत […]
एकला कोई नहीं चलतासाथ चलते हैं अपने हिस्से के पत्थरकिसी और के दिए पठारनमक के टीलेजिम्मेदारी […]
कल जब तुम इस अंगने में लौट के आना, तुम हमें न पाना – आत्महत्या करने […]
आंसू बहुत से थेकुछ आंखों से बाहरकुछ पलकों के छोर पर चिपकेऔर कुछ दिल में ही […]
क्या सचमुच फेसबुक ने लोगों को जोड़ा है   प्रिय फेसबुक,   बुरा न मानना। अब […]
24 सितंबर, 2011 को दैनिक भास्कर में छपी मरजानी की समीक्षा