एकला कोई नहीं चलतासाथ चलते हैं अपने हिस्से के पत्थरकिसी और के दिए पठारनमक के टीलेजिम्मेदारी […]
कोई सुर अंदर ही बजता है कई बारदीवार से टकराता हैबेसुरा नहीं होता फिर भी कितनी […]
पंजाब का एक छोटा-सा शहर – फिरोजपुर। 22 साल पहले यहीं से मेरा पहला कविता संग्रह […]
सहम-सहम कर जीते-जीतेअब जाने का समय आ गया। डर रहा हमेशा समय पर कामों के बोझ […]
इस बार सपने सीधे हथेली पर उतार दिए फिर उन्हें तकिए पर रखा खुशबू आने लगी […]
चिड़िया की खुशी का विस्तार उसके आकार से होता है कहीं ज्यादा लाल बत्ती होने के […]
पानी का उफान तेज था अंदर भी, बाहर भी फर्क एक ही था बाहर का उफान […]
हादसे एक ही बात कहते हैं मंगलौर में हो या मुंबई में इंसान के रचे हों […]
अनार के दाने ही थे वो पल गिलहरी की तरह गुदगुदाते आए फिर बह गए वो […]
लो मर गई मरजानी तब भी चैन नहीं देह से झांक कर देख रही है तमाशा […]