नहीं सुनी बाहर की आवाज अंदर शोर काफी था इतना बड़ा संसार हरे पेड़, सूखे सागर […]
बचपन में बत्ती चले जाने में भी गजब का सुख था हम चारपाई पे बैठे तारे […]
बस अब रंगों जैसा ही हो जाना है घुल जाना है पानी जैसे बह जाना है […]
अभी भी मन करता है घूम आऊं किताबों के मेले में पलटूं एक-एक पन्ना और घर […]
रसोई में रोज पकते रहें पकवान नियत समय पर टिक जाएं मेज पर इसकी मशक्कत में […]
वो अभी टेबल पर चार रोटी, तड़के वाली दाल, पालक-पनीर रखकर गया है, वो कौन है…. […]
2010 नए स्टेडियम, नई सड़कें, नई इमारतें धुला-धुला सा सब कुछ टेबल के नीचे खुजलियों का […]
कविता, वो भी हिंदी में, युवाओं के मुख से और जगह दक्षिणी दिल्ली। इस परिचय पर […]
पहला अध्याय नई फ्राक मिली कचनार के फूलों से लदी डाली पर गिलहरी-सी ठुमक-घुमक उठी जन्नत […]
खुशामदीद पीएम की बेटी ने किताब लिखी है। वो जो पिछली गली में रहती है उसने […]