(1) लगता है दिल का एक टुकडा रानीखेत के उस बड़े मैदान के पास पेड़ की […]
क्या वो भी कविता ही थीजो उस दिन कपड़े धोते-धोतेसाबुन के साथ घुलकर बह निकली थीएक […]
कोशिश सिर्फ इतनी थीलिफाफे में बंद कर खत भेजूंचंद लफ्ज़ होंचंद कतरे छिटकती जिंदगी के। बहुत […]
चुनाव से पहले गुहार लगी है‘सही’ आदमी को ही वोट दोवो अपराधी न हो, यह गौर […]
संतरी बाक्स से झांकते संतरी नेपांच साल में देख लिया है पूरा जीवनसत्ता में आने के […]
(1) बड़े घर की बहू को कार से उतरते देखाऔर फिर देखीं अपनीपांव की बिवाइयांफटी जुराब […]
मुमकिन है बहुत कुछआसमान से चिपके तारे अपने गिरेबां में सजा लेनाशब्दों की तिजोरी को लबालब […]
बचपन में कविता लिखीतो ऐसा उल्लास छलकाकि कागजों के बाहर आ गया। यौवन की कविताबिना शब्दों […]
बात में दहशतबे-बात में भी दहशतकुछ हो शहर मेंतो भीकुछ न हो तो भी चैन न […]
नौकरानी और मालकिनदोनों छिपाती हैं एक-दूसरे सेअपनी चोटों के निशानऔर दोनों ही लेती हैंएक-दूसरे की सुध […]