शाबाश इंडिया शाबाश। मुंबई की घटना के बाद दो परिवारों ने जिस हिम्मत के साथ इस संदेश को दिया कि चले जाइए आप हमारे घर से। नहीं चाहिए हमें आपकी हमदर्दी, नहीं चाहते हम आपकी सांत्वना का कोई बाउंस हुआ चैक। इस सच ने बहुत दिनों बाद दिल को सुकून दिया। सुकन यह सोच कर मिला कि आखिरकार जाग गया हिंदुस्तान क्योंकि सच को कहने के लिए हिम्मत का होना जरूरी है। हिम्मत चाहिए यह कहने की कि राजनीति की गद्दारी हमें समझ में आ रही है, इसलिए अब हमें आपकी कोई जरूरत नहीं।

मुंबई के बहाने इस बार जनता ने बहुत कुछ देखा। इस बार एक साथ ऐसी कई चीजें देखीं जो अब तक टुकड़ों में नसीब होती थीं। जनता ने देखा कि सबसे बड़ा मूर्ख वर्ग भी वही है और अब सबसे निर्णायक भी। पहले बात राजनीति की। आतंकवादी हमला हुआ और ताबड़तोड़ शुरू हुई राजनीति। देश के नाकाबिल गृह मंत्री को अपने पद से हटाने के लिए सरकार ने लंबा मौन साधा। जब कुछ जानें गईं, दबाव बढ़ा तो दस जनपथ जागा और देश के सबसे महत्वपूर्ण पद पर आसीन मंत्री को किसी तरह विदाई दी गई। लेकिन क्या यह सब पहले नहीं किया जा सकता था?

फिर आए बयान। विलासराव देशमुख कहते हैं-बड़े-बड़े शहरों में छोटी-छोटी घटनाएं हो ही जाया करती हैं। वे बोले कुछ इस अंदाज में कि मानो खेल-खेल में बच्चों के महज दो-चार खिलौने ही टूटे हों। ऐसा नहीं है कि अपने इस बयान के बाद मंत्री जी को कोई शर्म आ गई हो। इसके बाद वे रामगोपाल वर्मा औऱ अपने बेटे रीतेश देशमुख के साथ मौके का जायजा लेने जाते हैं। यह सब कुछ ऐसे अंदाज में कि मानो रात के खाने के बाद आइसक्रीम खाने निकले हों। बेटे और एक फिल्म निर्माता को इसलिए साथ ले गए कि देखो अभी जो लाइव देख रहे थे, उस नजारे को वीआईपी घेरे में अपनी आंखों से देखो और फिर इस पर हारर या फिर कामेडी जैसी कोई भी फिल्म चट-पट बना डालो। धन्य हैं महाराज।

फिर मुख्तार अब्बास नकवी साहब। वे सीधे औरतों की लिप्स्टिक पर वार करते हैं। मजा देखिए। हाथों में दर्जनों चूड़ियां पहन कर बयान बहादुर बनने वाले हमारे राजनीतिक दामादों को जब कोई उपमा नहीं मिलती तो वे सीधे औरत को पकड़ते हैं बिना यह सोचे कि लिप्स्टिक लगाने वाली महिलाएं उन पुरूषों से लाख दर्जे बेहतर हैं जिनमें मर्दानगी कभी पैदी हुई ही नहीं।

लेकिन इन सबके बीच मीडिया ने भी कम करतब नहीं किए। हमारी अपनी बिरादरी के कई जांबाजों ने दुश्मन की भरपूर मदद की। उनका मार्गदर्शन किया कि हेमंत करकरे कहां-कहां जा रहे हैं। ताज के किस फ्लोर पर कौन-कौन फंसा है। एनएसजी कमांडो कहां से आ रहे हैं। यहां तक कि आतंकवादियों के लाइव फोन भी टीवी पर दिखाए गए ताकि आतंकवादियों का हौसला बढ़े। कुल मिलाकर कुछ चैनलों ने भारत की बजाय पाकिस्तान की भरपूर मदद की।

इस दहशत की एक-एक किरचन को भोगा जनता ने और समझा दर्द में तार-तार होना। जनता ने देखा कि जब जरूरत पड़ी तो आग में न नेता उतरे न मीडिया (और दोनों ही जिस हद तक भी उतरे, उसके पीछे उनका अपना स्वार्थ था)। यहां देशभक्ति की भावना सर्वोपरि नहीं थी। यहां ऊपर था-अपना मुनाफा। खुद का टीवी के परदे पर चमकना, कुछ एक्सक्लूयजिव कर जाना।

अब जब सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने हर बार की तरह कुछ चैनलों के हाथों में नाटक भरे नोटिस थमा दिए हैं और केंद्र सरकार ने हल्की-फुल्की सरकारी कवायदें कर दी हैं, एक बात जो किसी के जहन में नहीं आ रही वह यह है कि अब इन पर विश्वास करेगा कौन? वे यह भी नहीं समझ पा रहे कि कविता करकरे जब एख नरेंद्र मोदी से एक करोड़ का चैक लेने से इंकार कर देती है तो उसका क्या मतलब होता है?

बहरहाल जनता का विश्वास अब कमांडो पर है। वही कमांडो जिस पर केरल के मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर वो शहीद न होता तो कोई कुत्ता भी वहां न जाता। मुख्यमंत्री जी भूल गए कि कुत्ता मंत्रियों से ज्यादा वफादार होता है। वे वहां जाएं न जाएं, वहां कुत्ते भी जाएंगे और आम जनता भी क्योंकि आखिरकार यही मायने रखते हैं।
तो देश के हुक्मरानों, अब यह जान लीजिए कि सिर्फ उन्नीकृष्णन ने ही अपने घर का दरवाजा आपके मुंह पर नहीं मारा है, यह तमाचा तो अब जनता भी आपके चेहरे पर चिपका चुकी। अब चिपके रहिए अपनी कुर्सी से और बनिए बयान बहादुर। हिंदुस्तान जीता है, जीतेगा –लेकिन आप लोगों की बदौलत नहीं, अपनी बदौलत।

(http://khabar.josh18.com/blogs/36/131.html)

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9 Responses

  1. hi mam, tht was an igniting article…especially ur comments on naqvi n whr u said dogs r more faithful than politicians…you seem to hv missed only on the point tht Mr. R.R. Patil made the comment “such things happen in big cities” n nt Vilasrao…anyways both are useless people who cares…Its hi-time for us to not only wake-up but also act reasonably before this heartless terrorism ruins our beautiful country. Jai Hind….

  2. वर्तिका जी, मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रहा था और लिखना भी चाहता था। लेकिन सच पूछिए तो मुझे अपने राजनेताओं के बारे में लिखना चिकने घड़े पर पानी डालने जैसा लगा। लिहाज़ा, नेताओं की करतूत पर कुछ नहीं लिखने का ही फ़ैसला किया। वैसे आपने जो लिखा है, वो सटीक है। लेकिन मुट्ठी भर लोगों के इस विरोध पर मैं ज़्यादा उम्मीद नहीं रखता। मुझे तो हैरानी होती है जनता पर, अपने-आप पर… पता नहीं, और कितने सगों को गंवाने के बाद हमें होश आएगा और हम सही मायने में कुछ करने का जज़्बा पैदा कर सकेंगे!

  3. nahin abhi to chipkana baki hai. humen in sab netaon ko is chunav retire kardena chahiye aur apney beech se naye neta laney chahiye.

  4. hy vartika,
    vakai hindustan jag gaya hai. par afsosh ki hindustan ko jagane ke liye itane begunahon ko apni jan ganvani padi. kash! ki hamarara hindustan itna marmsprshi hota aour vo itani lashen bichhane se pahle jaag gaya hota. aap ka bhi vahi karykshetra hai jo mera. is nate main samajh sakata hun ki mumbai ki ghatna kitani aham hai hamare liye aour hamare hindustan ke liye. yah baat agar hamare desh ke karndhar samajh jayen to hame samajhna chahiye ki hamara kiya gaya kary, likha gaya ek-ek shabd sarthak hua hai…
    niraj shukla
    my blog- http:\neerubaba.blogspot.com

  5. बहुत ही सधी भाषा में आपने वो सारी बातें कहीं, जो मुंबई हमले औऱ उसके बाद की सियासी नौटंकी पर लोगों के मन में उमड़-घुमड़ रही थी। …एक संशोधन..मुंबई जैसे बड़े शहर में, छोटी-छोटी बातें वाला डॉयलाग देशमुख का नहीं, आरआर पाटिल का था।

  6. वर्तिका जी ,
    शायद ये भयानक आतंकवादी घटनाओं में हुआ विष्फोट ,
    एक अरब से अधिक जनसंख्या वाले, सोते हुए इस देश
    को जगाने का कार्य कर सके ..

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