Vartika Nanda
February 10, 2019
रंगून में अंग्रेजों की कैद में रहते हुए उन्होंने ढेरों गजलें लिखीं. बतौर कैदी अंग्रेजों ने उन्हें कागज-कलम तक मुहैया नहीं की थी. तब यह क्रांतिकारी शासक कोयले और जली हुई तीलियों से जेल की दीवारों पर गजलें लिखने लगा. दीवार पर लिखी गई उनकी यह मशहूर गजल आज भी खूब याद की जाती है और जिंदगी की हकीकत के करीब है.
February 10, 2019
रंगून में अंग्रेजों की कैद में रहते हुए उन्होंने ढेरों गजलें लिखीं. बतौर कैदी अंग्रेजों ने उन्हें कागज-कलम तक मुहैया नहीं की थी. तब यह क्रांतिकारी शासक कोयले और जली हुई तीलियों से जेल की दीवारों पर गजलें लिखने लगा. दीवार पर लिखी गई उनकी यह मशहूर गजल आज भी खूब याद की जाती है और जिंदगी की हकीकत के करीब है.
तिनका तिनका की जेल लेखन की कड़ी में आज बारी बहादुर शाह जफर की. जफर (1775-1862) भारत में मुग़ल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह थे और उर्दू भाषा के दमदार शायर भी. जफर अपने पिता अकबर शाह द्वितीय की मौत के बाद 28 सितंबर 1838 को दिल्ली के बादशाह बने. अकबर शाह द्वितीय इस अति संवेदनशील कवि जफर को सदियों से चला आ रहा मुगलों का शासन नहीं सौंपना चाहते थे ( वैसे भी बहादुर शाह जफर का शासनकाल आते-आते दिल्ली सल्तनत काफी सिमट चुकी थी और उनके पास राज करने के लिए सिर्फ दिल्ली यानी शाहजहांबाद ही बचा रह गया था) लेकिन तब भी मुगल सल्तनत अपने अंतिम सिरे में जफर के ही हाथों में आई.
जफर ने भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम, 1857 में भारतीयों का नेतृत्व किया. उस दौरान सभी विद्रोही सैनिकों और रियासतों ने उन्हें हिंदुस्तान का सम्राट माना और उनके नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ दमदार बगावत की. 1857 में अंग्रेज तकरीबन पूरे भारत पर अपना कब्जा जमा चुके थे. तब विद्रोही सैनिकों और रियासतों के लिए केंद्रीय नेतृत्व की जरूरत को बहादुर शाह जफर ने ही पूरा किया और उनके समर्थन के बीच वे आजादी के उस आंदोलन के जांबाज सिपाही बन गए.
इतिहास में दर्ज है कि भारतीयों ने शुरू में दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में अंग्रेजों को कड़ी शिकस्त दी. लेकिन बाद में प्रथम स्वाधीनता संग्राम का रुख पूरी तरह से बदल गया और अंग्रेजों को बगावत को कुचलने में सफलता हासिल हो गई. ऐसे में 82 बरस के बूढ़े बहादुर शाह जफर की अगुवाई में लड़ी गई यह लड़ाई कुछ ही दिन चली. तब बहादुर शाह जफर ने हुमायूं के मकबरे में शरण ली लेकिन मेजर हडस ने उन्हें उनके बेटे मिर्जा मुगल और खिजर सुल्तान और पोते अबू बकर के साथ अपनी गिरफ्त में ले लिया.
अंग्रेजों ने उनके साथ जुल्म की सभी हदें पार कर दीं. जब बहादुर शाह जफर को भूख लगी तो अंग्रेज उनके सामने थाली में परोसकर उनके बेटों के सिर ले आए. उन्होंने अंग्रेजों को जवाब दिया कि हिंदुस्तान के बेटे देश के लिए सिर कुर्बान कर अपने बाप के पास इसी अंदाज में आया करते हैं. युद्ध में हार के बाद उन पर मुक़दमा चलाया गया और उन्हें रंगून, बर्मा (अब म्यांमार) निर्वासित कर दिया. इसके पीछे एक बड़ा मकसद आजादी के लिए हुई बगावत को पूरी तरह खत्म कर देना भी था. उन्होंने रंगून में ही अपनी अंतिम सांसें लीं.
रंगून में अंग्रेजों की कैद में रहते हुए उन्होंने ढेरों गजलें लिखीं. बतौर कैदी अंग्रेजों ने उन्हें कागज-कलम तक मुहैया नहीं की थी. तब यह क्रांतिकारी शासक कोयले और जली हुई तीलियों से जेल की दीवारों पर गजलें लिखने लगा. दीवार पर लिखी गई उनकी यह मशहूर गजल आज भी खूब याद की जाती है और जिंदगी की हकीकत के करीब है.
लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ए-ना-पाएदार में
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में
काँटों को मत निकाल चमन से ओ बाग़बाँ
ये भी गुलों के साथ पले हैं बहार में
बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला
क़िस्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल-ए-बहार में
कितना है बद-नसीब ‘ज़फ़र’ दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में
बहादुर शाह जफर की मौत 7 नवंबर, 1862 में 87 साल की उम्र में जेल में ही हुई थी. उन्हें उसी दिन जेल के पास ही श्वेडागोन पैगोडा के नजदीक दफना दिया गया. कहते हैं कि उनकी कब्र के चारों ओर बांस की बाड़ लगा दी गई और कब्र को पत्तों से ढंक दिया गया.
लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ए-ना-पाएदार में
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में
काँटों को मत निकाल चमन से ओ बाग़बाँ
ये भी गुलों के साथ पले हैं बहार में
बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला
क़िस्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल-ए-बहार में
कितना है बद-नसीब ‘ज़फ़र’ दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में
बहादुर शाह जफर की मौत 7 नवंबर, 1862 में 87 साल की उम्र में जेल में ही हुई थी. उन्हें उसी दिन जेल के पास ही श्वेडागोन पैगोडा के नजदीक दफना दिया गया. कहते हैं कि उनकी कब्र के चारों ओर बांस की बाड़ लगा दी गई और कब्र को पत्तों से ढंक दिया गया.
अंग्रेज चार दशक से हिंदुस्तान पर राज करने वाले मुगलों के आखिरी बादशाह के अंतिम संस्कार को ज्यादा ताम-झाम नहीं देना चाहते थे. वैसे भी बर्मा के समुदायों के लिए यह किसी बादशाह की मौत नहीं बल्कि एक आम मौत भर थी.
उस समय जफर के अंतिम संस्कार की देखरेख कर रहे ब्रिटिश अधिकारी डेविस ने भी लिखा है कि जफर को दफनाते वक्त कोई 100 लोग वहां मौजूद थे और यह वैसी ही भीड़ थी, जैसे घुड़दौड़ देखने वाली या सदर बाजार घूमने वाली. जफर की मौत के 132 साल बाद साल 1991 में एक स्मारक कक्ष की आधारशिला रखने के लिए की गई खुदाई के दौरान एक भूमिगत कब्र का पता चला. 3.5 फुट की गहराई में बादशाह जफर की निशानी और अवशेष मिले जिसकी जांच के बाद यह पुष्टि हुई कि वह जफर की ही है. यह दरगाह 1994 में बनी. इसमें महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग प्रार्थना करने की जगह भी बनाई गई है.
5 Responses
हृदयस्पर्शी लेख ।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन वो अपनी दादी की तरह लगती है : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है…. आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी….. आभार…
Tinka Tinka Tihar is an extraordinary initiative by Ms Vartika Nanda and Ms Vimla Mehra. The song which is scripted by Ms. Vartika Nanda tells the viewers that there is a life behind the closed doors of Tihar jail and behind these doors are people who have their own dreams talent and happiness. The energy and enthusiasm with which people are playing their part in the video is a proof of the success of Tinka Tinka. #tinkatinka #vartikananda #prison #tihar #jailreforms
The way hundreds of prisoners including Bahadur Shah were treated by the British is indeed very saddening. But many prisoners instead of breaking down in their cells, have used the silence around them to write. They wrote about their lives, their thoughts and their dreams. This story of Bahadur Shah is an inspiration and a message to the rest of the world, that whatever happens we must fight for our rights and should not allow any situation to break us.
Had Bahadur Shah Zafar not written down his ghazals on the walls of the prison with coal, all it would have been lost in the roll of the wheel of Time. British were a colonial power, they were in India for the purpose of their gains by exploitation of India. So they'd obviously not want the fire for freedom struggle to spread, they'd want to curb it in all forms. But today we live in a democratic country, the prison inmates have human rights, providing them with pen and paper and libraries will only push them forward towards a positive change. #vartikananda #tinkatinka #jail #prison