बाहरी दुनिया के लिए महमूद के दो परिचय हैं- एक परिचय उसकी फिल्म पीपली लाइव और उसकी दास्तानगोई और दूसरा परिचय बलात्कार के मामले में उसका तिहाड़ जेल में बंद होना. लेकिन अपने दोस्तों के लिए महमूद इससे कहीं ज्यादा था और रहेगा.
शायद 2000 के आस-पास की बात है. एनडीटीवी के रात नौ बजे के बुलेटिन में एक स्टोरी का पीटूसी मुझे हैरान कर देता है. शेक्सपीयर की पंक्तियों को कहता आत्मविश्वास से भरा युवक नाटकों पर एक स्टोरी की शुरूआत कर रहा है. मैं ठिठक जाती हूं. यह कौन है. कुछ पलों बात पता चलता है. यह है – महमूद फारुखी.
महमूद और अनुषा- हम तीनों एक ही जगह काम करते थे. हम सब साथी थे. बाद के सालों में महमूद और अनुषा की फिल्म आई, तब मैनें उनसे आग्रह किया कि वे राजकमल प्रकाशन से आई मेरी नई किताब ‘टेलीविजन और अपराध पत्रकारिता’ के विमोचन के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बनें. वह कार्यक्रम शानदार रहा. बीच के सालों में संपर्क बना रहा- कभी कम, कभी ज्यादा और इस बीच महमूद की गिरफ्तारी की खबर आई. जाहिर है दोनों की जिंदगी में बहुत कुछ बदला.
23 सितंबर के कार्यक्रम के दौरान कई बड़े जज मौजूद थे. यहां तक कि जस्टिस मदन बी लोकुर भी जिन्होंने हाल ही में जस्टिस दीपक गुप्ता के साथ जेल सुधारों के बारे में विस्तार से दिशा-निर्देश जारी किए हैं. पुलिस और एनजीओ की बातचीत के बीच महिला और पुरुष बंदियों ने दो नाटक भी प्रस्तुत किए, जिसे महमूद ने खुद संजोया था. जब बंदियों को मंच पर लाया गया, महमूद पूरी तरह से निर्देशक की भूमिका में दिखाई दिया. बंदियों की कला को देखकर यह अंदाजा लगाना जरा भी मुश्किल नहीं था कि उन दोनों नाटकों के सूत्र पिरोने में महमूद ने कितनी मेहनत की होगी. उन बंदियों को देखकर ऐसा लगता ही नहीं था कि उन्होंने पहली बार इतने बड़े स्तर पर मंच का या फिर जनता का सामना किया होगा. मैं और मेरे साथ बैठी अनुषा महमूद की इस मेहनत को देखकर बेहद खुश थे.
अब महमूद रिहा हो रहा है. हाईकोर्ट ने उसे संदेह का लाभ देते हुए बरी किया है. मीडिया की दुनिया के लिए यह एक बड़ी खबर है. फिल्मी दुनिया के लिए भी क्योंकि कोई कलाकार किसी भी परिस्थिति में जहां भी रहता है, वह सृजन ही करता है. जेल में रहते हुए महमूद ने एक नई दुनिया को गढ़ा है. इससे ठीक दो दिन पहले 21 सितंबर को जेल नंबर तीन में जब महमूद से मेरी मुलाकात हुई थी तो वह बेहद मायूस था. उसका वह चेहराजेल से लौटने के बाद भी जैसे मेरे साथ चलता रहा. मैंने प्रार्थना की कि वह जल्द मुक्त हो जाए. उस दिन मैंने एक अलग महमूद देखा. जेल में जब मेरी उससे मुलाकात हुई तो वह मुझे देखकर थोड़ा हिचका और फिर बातें होने लगीं. मैंने देखा कि उसके अंदर एक परेशानी थी. एक संकोच था. मेरे पास आकर वह जब एक बंदी की तरह स्टूल पर बैठने लगा तो मैंने थोड़ा-सा टोकते हुए उसे साथ बैठने को कहा. फिर हम पुराने साथी की ही तरह बैठकर तिनका तिनका के मेरे सपनों और उसके काम पर बात करने लगे.
ऑस्कर वाइल्ड. इन सभी ने जेल के उस एकाकी पल को साधना के साथ जोड़ा और कुछ नया रचा.
2 Responses
Vartika Nanda Ma'am will certainly change the jails in India. Having seen and read her work titled Tinka Tinka Tihar, I know her determination to this cause. Years ago, we used to see her as an energetic reporter on NDTV. Her voice was so special and so were her words. Now, as an accomplished writer, President Awardee and Prison Reformist. she is doing what most of us can't even dream of. I have listened both her songs – TINKA TINKA TIHAR and TINKA TINKA DASNA and I have felt deeply inspired. The wall that she has created inside the jails are also so special. I am sure this book will bring a complete change in prison reforms in India and across the globe. Congratulations Tinka Tinka and Vartika Nanda Ma'am. #Vartikananda #prisoners #human_rights #humanity#change
This article by Vartika Mam, which tells the story of Mehmood gives us the message that we may have to face tough times in our lives. But these times do not mark the end of our lives. Just like Munni Mahesh and Sundara who made the best use of their time in jails, the inmates should be able to realise that prison is not the end of their life. Hope the prison authorities are able to support and conduct more such activities for prisoners inthe future. #tinkatinka #prisonreforms #humanrights