वर्तिका नंदा
January 24, 2019 

इमरजेंसी की घोषणा के साथ ही 25 जून की आधी रात को गांधी शांति प्रतिष्ठान से पहली गिरफ्तारी जेपी की ही हुई और उसके साथ ही पूरे देश से कई नेता गिरफ्तार कर लिए गए.



इस समय मेरे हाथों में खाकी जिल्द लिए जो किताब है, उसका शीर्षक है- मेरी जेल डायरी’.
जय प्रकाश नारायण की 1977 में प्रकाशित हुई चर्चित आत्मकथा ‘मेरी जेल डायरी’ चंडीगढ़ जेल में लिखी गई. यह किताब इमरजेंसी की गाथा कहते हुए नजरबंदी और बाकी कुछ जेलों में रहे राजनीतिक कैदियों की मनोदशा को बयान करती है. राजपाल एंड संज, कश्मीरी गेट, दिल्ली से प्रकाशित इस किताब की कीमत 10 रुपए है.
इस किताब की प्रस्तावना में श्री लक्ष्मीनारायण लाल ने लिखा है कि इस किताब के पन्ने लोकमानस के ऐसे दर्पण हैं जिनमें कोई भी अपने समय की छवि देख सकता है. उस समय जयप्रकाश छात्रों और युवकों के लोकनायक हो गए और यह आंदोलन सम्पूर्ण क्रांति का रूप लेने लगा. गौरतलब है कि जेपी ने अपने जीवन में पहली बार जो कविताएं लिखीं, वह भी इस डायरी का हिस्सा बनीं.
इमरजेंसी की घोषणा के साथ ही 25 जून की आधी रात को गांधी शांति प्रतिष्ठान से पहली गिरफ्तारी जेपी की ही हुई और उसके साथ ही पूरे देश से कई नेता गिरफ्तार कर लिए गए. दिल्ली से गिरफ्तार करके जेपी को हरियाणा में सोहना नामक जगह पर ले जाया गया और उन्हें वहां के गेस्ट हाउस में रखा गया. सोहना में उनकी मुलाकात मोरारजी देसाई से हुई. वे भी जेपी की ही तरह गिरफ्तार किए गए थे. यहां जेपी सिर्फ 3 दिन रहे और उसके बाद 1 जुलाई की शाम को एयरफोर्स के विमान से उन्हें चंड़ीगढ़ पहुंचा दिया गया. वहां पर उन्हें पी.जी.आई के अस्पताल में रखा गया. तब से लेकर रिहाई के दिन यानी 15 नवंबर 1975 तक वे वहीं पर नजरबंद रहे. उन्होंने अपनी जेल डायरी की शुरुआत यहीं से की है.
इस जेल डायरी की शुरुआत 1975 से ही होती है. पहले पन्ने की पहली पंक्तियां कहती हैं- “मेरे चारो ओर सब टूटा बिखरा पड़ा है. नहीं जानता अपने जीवन काल को वर्तमान समय मे फिर से संवरा हुआ देख पाउंगा कि नहीं. शायद मेरे भतीजे और भतीजियां देख पाए. शायद.”
26 जुलाई को वे लिखते हैं “आज जेल में मुझे पूरा एक महीना बीत चुका है. मैं यह कहना चाहूंगा कि यह एक महीना पूरे एक वर्ष के बराबर था. शायद यह ऐसा इसलिए महसूस हो रहा है कि पिछले 30 वर्षों में, पूरा सही कहें तो 29 वर्ष में जेल न जाने के कारण जेल जाने की आदत में ही फर्क पड़ गया है.”
नजरबंदी के पूरे साढे चार महीनों के दौरान वह यहां एकदम अकेले रखे गए. उनके स्वभाव से अकेलापन उनके लिए सबसे ज्यादा अखरने वाली बात थी. किताब में जेपी की वह विनती खासतौर से उद्वेलित करती है जिसमें वे सत्ता से निवेदन करते हैं कि नजरबंदी के दौरान उन्हें कम से कम किसी एक व्यक्ति से मिलने और बात करने की अनुमति दी जाए. नजरबंदी के एकाकीपन का किसी बंदी की मनोदशा पर कितना गंभीर असर पड़ सकता है, यह भी इस किताब में झलकता है.
चंडीगढ़ के जिला अधिकारी, अस्पताल के डॉक्टर या नर्स उनसे मिलते तो जरूर लेकिन उन सब पर यह आज्ञा थी कि उनसे सेहत की पूछताछ के अलावा और कोई भी बात नही की जायेगी. जेपी ने सरकार से अनुरोध भी किया कि उनके साथ किसी ऐसे व्यक्ति को रहने दिया जाए जिससे वह थोड़ी से बात कर सकें और अपने दुख- दर्द को बांट सकें. लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई. वे बेहद तल्खी और क्षोभ के साथ लिखते हैं कि अगर सत्ता चाहती तो देश के विभिन जेलों में आंदोलन के जो हजारों लोग बंद थे, किसी एक को उनके साथ चंडीगढ़ जेल में रखा जा सकता था लेकिन ऐसा नही हुआ.
जेपी के मुताबिक “सरकार का मेरे साथ व्यवहार विदेशी अंग्रेज सरकार से भी बुरा था क्योंकि 1942 के आंदोलन में जब मैं गिरफ्तार होकर लाहौर किले में दाखिल हुआ तो पहले वहां भी मुझे कुछ महीनों तक बिल्कुल अकेले रखा गया और मैं सरकार से किसी साथी की मांग करता रहा. अंत में उस विदेशी सरकार ने मेरी प्रार्थना सुनी. और जब डॉ. राम मनोहर लोहिया लाहौर किले में लाए गए तो हर दिन एक घंटे तक उनसे मिलने और बात करने की इजाजत मुझे मिली.”
इस तरह से आखिर तक जेपी को चंडीगढ़ में एक कमरे में अकेले रहना पड़ा और यही उनके स्वभाव के सबसे विपरीत सबसे बड़ी सजा थी. चंडीगढ़ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कॉलेज की तीसरी मंजिल का एक पूरा वार्ड पुलिस के कब्जे में था. उस वार्ड के बीचों बीच एक कमरे में वे नजरबंद किये गए थे. कमरा साधारण था. उसमें एक पलंग था और साथ मे एक बाथरूम लगा था. कमरा बाहर से तालाबंद रखा जाता था और दरवाजे पर एक पुलिस अधिकारी 24 घंटे पहरा देता था. बाहर बरामदे में भी पुलिस तैनात थी. शासन जैसे भयभीत था कि 74 साल के जेपी जेल की दीवार को तोड़कर बाहर निकल सकते हैं. यहां घूमने के लिए एक तंग गलियारा था जिसके दोनों तरफ के कमरों में पहरेदार उन पर नजर रखते थे.
जेपी से मिलने उनके सगे संबंधी या रिश्तेदार आ सकते थे और वह भी बहुत से परेशानी और परीक्षणों के बाद. जेपी के इस कमरे में पलंग के अलावा एक मेज और कुर्सी थी. छत पर एक पंखा था और एक अलमारी थी और तीन कुर्सियां. इसके अलावा और कुछ भी नही. कमरे के बाहर दरवाजे पर लाल बत्ती जलती रहती थी. उसके सामने पुलिस का कड़ा पहरा था.
जेपी लिखते हैं- “ब्रिटिश शासन के अधीन मैंने व्यक्तिगत रूप से आंसू गैस या लाठी चार्ज का अनुभव नही किया था और अप्रैल 1946 में आगरा की सेंट्रल जेल से रिहाई के बाद मुझे कभी भी गिरफ्तार नही किया गया, न ही जेल भेजा गया. एक महीना एक वर्ष के बराबर लगने का एक कारण और भी था और वह था मेरा अकेलापन. जेल के दूसरे साथियों के साथ शायद स्थिति कुछ और होती. ”
यह किताब उस समय के बेहद विवादास्पद राजनीतिक माहौल की व्याख्या करती हुई आगे बढ़ती है. उस समय अकेले ट्रिब्यून समाचार पत्र के जरिए जेपी देश के घटनाक्रम को जान पा रहे थे. बीते कुछ सालों में मानवाधिकारों की चर्चाओं के चलते जेलों में कई बड़े बदलाव हुए हैं लेकिन इसके बावजूद जेल की तन्हाई में अकेलेपन से जूझते लोगों की भी कोई कमी नहीं. ठसाठस भरी जेलों में समय के साथ अकेले जूझते लोगों की कहानियां सिर्फ चारदीवारियां ही जानती हैं.

Courtesy- https://zeenews.india.com/hindi/special/vartika-nanda-blog-on-jai-prakash-narayan-jail-dairy-and-loneliness-in-prisons/492058

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5 Responses

  1. I just like this fact about Vartika Ma'am that she covers literally every topic related to inmates and jails. Her dedication towards the Tinkas tinka is something very appreciable.. Congratulations to her and more power to her. #Vartikananda #prisoners #human_rights #humanity #change

  2. This article by Vartika Mam is amazing. Enduring loneliness is indeed very hard. It would be hard for the readers to even imagine what prisoners such as JP had to undergo when they were kept under house arrest. As mentioned in the article there are many prisoners who are forced to remain lonely in their cells. Prisons are places that are meant not just to punish but also to reform the inmates. Keeping them in isolation, making them lonely only makes their life harder and does not help in reforming them. I hope the authorities take notice of this article and realise the point raised by her. #vartikananda #humanrights #prisonreforms

  3. The account about his life in prison by JP Narayan is heart-wrenching. As general public we don't realise how lonely prison can get. We nonchalantly compare our lockdown life to life in prison, but the latter is worse. In such desolate conditions, jotting things down, engaging in habits like painting, singing,etc can make lives of inmates a little better. #vartikananda #tinkatinka #jail #prison

  4. Life in prison can be desolate and not one with much positivity. Basic stationary such as pen and paper can help inmates fight off the loneliness a bit. We need to look at it this way, had it not been for Tinka Tinka Dasna and Tinka Tinka Tihar or for the accounts by freedom fighters like JP and Mahatma Gandhi, we wouldn't have been able to peep into the life in prison, the readers of such accounts would still not think of prison as a part of the society and would have thought just like the rest of the society, little steps can bring a big change. #vartikananda #tinkatinka #prison #jail

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