कमरे की खिड़कियां और रौशनदान

बंद कर दिए हैं

कुछ दिनों के लिए

हवा ताजी हो तो

हमेशा ऐसा नहीं होता

बाहर का बासीपन कमरे में आता है

तो चेहरे पर पसीने की बूंदें चिपक जाती हैं

बंद कमरे में

अलमारी के अंदर

सच के छोटे-छोटे टुकड़े

छिपा दिए हैं

लब अब भी सिले हैं

जिस दिन खिड़कियां खुलेंगीं

लब बोलेंगें

लावा फूटेगा

हवा कांप उठेगी

नहीं चाहती कांपे बाहर कुछ भी

इसलिए मुंह पर हाथ है

दिल पर पत्थर

……………..

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