मेरे सपने अपनी जमीन ढूंढ ही लेते हैं
बारिश की नमी
सूखे की तपी
रेतीले मन
और बाहरी थपेड़ों के बावजूद
खाली पेट होने पर भी
सपने मेरा साया नहीं छोड़ते
चांद के बादलों से लिपट जाने
सूरज के माथे पर बल आने
अपनों के गुस्साने
आवाज के भर्राने पर भी
ये सपने अपना पता-ठिकाना नहीं बदलते
सपनों की पंखुड़ी
किसी के भारी बूटों से कुचलती नहीं
हंटर से छिलती नहीं
बेरूखी से मिटती नहीं
सपनों का ओज
उदासी में घुलता नहीं
टूट कर बिखरता नहीं
अतीत की रौशनियों की याद में
पीला पड़ता नहीं
क्योंकि वे सपने ही क्या
गर वो छिटक जाएं
मौसमों के उड़नखटोलों से
क्या हो सकता है
इतना निजी, इतना मधुर, इतना प्यारा
सपनों की ओढ़नी
सपनों की बिछावन
सपनों की पाजेब
सपनों का घूंघट
सपनों की गगरी
काश!, कि तुम होते आज पास पाश
तो एक सुर में कहते
सबसे खतरनाक होता है
सपनों का मर जाना
और मैं कहती
सबसे ताकतवर होता है
सपनों का खिल-मिल जाना
हिम्मती हो जाना
फौलादी बन जाना
कवच हो जाना
हथेलियों की लकीरों को
आलिंगन में भर लेना कुछ इस तरह कि
सपने बस अपने ही हो जाएं
कि सपने
अपनों से भी ज्यादा अपने हो जाएं
हां, सबसे ताकतवर होता है
सपनों का खिल-मिल जाना
6 Responses
kafi acha likhte he…mujhe ahca laga.. babumumukesh@rediffmail.com
babukikalamse@blogspot.com
bahut hi sundara, bhhav-pradhan kavita….
Apko pahli bar kisi patrika me padha tha tha fir dusri bar, outlook par.
Apki har rachna ek naveen prerna deti hai., jab bhi apko padhta hun to kuchh n kuchh naya pata hun,
apko padkar kai vichar janm lete hai,
mai apni kai rachnao ka shrey apko deta hun, kyuki apko padhkar kar hi mai unko likh saka tha,
itne sundar,jwlant aur samaj hit
ki rachnae apke blog par hai, fir b comment nahi, ye samjh me nahi aaya
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aur ant mai ek bar fir se aapko abhar,
Santosh Kumar "PYASA"
(Ptrkarita aur Sahitya ki duniya me apni pahchan bananae me anvrat.)
आपकी कविता धुंएँ में अपने हौसले की गंध खोजती है और इस तरह से पाश की कविता को भी ज़िन्दा रखा जा सकता है…
nice blog…
aapki rachna badi hi prernadayk hoti h bahut dino se maine apne sapne ko khud se dur kr diya bt ab mai apne sapno ke liye hi jitu hu. aapki kavita padna ke bad hi maine media me aane ka socha. aap hi meri aadarsh ho….
Madam delhi aur patrakarita mein rahkar bhee saarthak disha mein soch rahi hain accha laga. Aapka kavita sangrah thee hun rahoongee pad raha hun. Iss par baat hogee. -kamal jeet choudhary ( j and k )