(1)
बड़े घर की बहू को कार से उतरते देखा
और फिर देखीं अपनी
पांव की बिवाइयां
फटी जुराब से ढकी हुईं
एक बात तो मिलती थी फिर भी उन दोनों में –
दोनों की आंखों के पोर गीले थे
(2)
फलसफा सिर्फ इतना ही है कि
असीम नफरत
असीम पीड़ा या
असीम प्रेम से निकलती है
गोली, गाली या फिर
कविता
10 Responses
बहुत खूब!
कम शब्दों में फलसफे को बड़ी गहराई से समझाया है आपने।
ये क्या हुआ बिना कमेट किए ही कमेट चला गया।
वैसे आपका लिखा पढकर भी तो नि:शब्द ही हूँ।
सुंदर।
चलते चलते यूँ ही…………..सही कहा आपने।
achchi hein kshanikaen.
अच्छे हैं।
पर गोली, गाली
या कविता की
जगह गीत
अधिक उपयुक्त
लगता सिर्फ
राय यह मेरी है।
सुन्दर ब्लॉग…सुन्दर रचना…बधाई !!
दोनों ही क्षणिकाएं बहुत अच्छी हैं .–
एक बात तो मिलती थी फिर भी उन दोनों में –
दोनों की आंखों के पोर गीले थे
———–
असीम नफरत
असीम पीड़ा या
असीम प्रेम से निकलती है
गोली, गाली या फिर
कविता
बहुत सुंदर
बढीया है।
दूसरी वाली क्षणिका अच्छी लगी……
आलोक सिंह “साहिल”